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टीबी उन्मूलन यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
संपादकीय का स्वर
- संपादक राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (स्टेट हेल्थ रिसर्च सेंटर/एसएचआरसी) छत्तीसगढ़ के पूर्व निदेशक हैं। इस लेख में, वे बताते हैं कि पोषण तथा टीबी का प्रत्यक्ष संबंध कैसे है तथा टीबी का उन्मूलन करने हेतु टीकों को संतुलित पोषण आहार के साथ क्यों पूरक किया जाना चाहिए।
टीबी के उपचार का इतिहास
- इससे पूर्व, जिन अस्पतालों में लंबे समय तक रहने वाले मरीज थे, वे टीबी को ठीक करने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में स्वच्छ हवा, शुद्ध जल एवं अच्छे भोजन के साथ स्थापित किए गए थे।
- 1943 में स्ट्रेप्टोमाइसिन की खोज तक टीबी के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं थी।
- इसके अतिरिक्त, वर्धित पारिश्रमिक, बेहतर निर्वाह स्तर एवं भोजन के लिए उच्च क्रय शक्ति के साथ, इंग्लैंड एवं वेल्स में टीबी से मृत्यु दर प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 300 लोगों से घटकर 60 हो गई।
- इसके अतिरिक्त, कीमोथेरेपी के आगमन से बहुत पहले ही टीबी सामाजिक-आर्थिक रूप से विकसित देशों से समाप्त हो गई थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश सैनिकों में टीबी की घटनाओं में 92% की कमी आई थी, जिन्हें रूसी सैनिकों की तुलना में 1,000 कैलोरी का अतिरिक्त रेड क्रॉस आहार तथा 30 ग्राम प्रोटीन दिया गया था, रूसी सैनिकों को मात्र एक शिविर आहार दिया गया था।
- उचित पोषण के इस ऐतिहासिक महत्व को आधुनिक चिकित्सकों द्वारा नजरअंदाज कर दिया, जिन्होंने शुरू में स्ट्रेप्टोमाइसिन इंजेक्शन, आइसोनियाजिड तथा पैरा-एमिनो सैलिसिलिक एसिड के साथ टीबी को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया था।
- रोगाणुओं को मारने वाले एंटीबायोटिक का पता लगाने की खोज में, रोग के सामाजिक निर्धारकों को उपेक्षित कर दिया गया।
जीवाणु केंद्रित उपचार
- रिफैम्पिसिन, एथेमब्युटोल, पिराजीनामइड इत्यादि जैसी उन्नत दवाओं के साथ, टीबी के विरुद्ध लड़ाई जारी रही, जो बहु-दवा प्रतिरोधी बन गई।
- बैक्टीरिया पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने का अर्थ था कि उपचार बैक्टीरिया केंद्रित थे न कि दवा केंद्रित।
पोषण तथा टीबी
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के जे.बी. मैकडॉगल एवं अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में डॉ. रेने जे. डबोस ने 1950 के दशक के दौरान कहा था कि तपेदिक को रोकने में व्यक्ति के पोषण का अत्यधिक महत्व है।
- टीबी को निर्धनों का रोग माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पाया है, निर्धनों के उपचार हेतु जाने की संभावना तीन गुना कम है तथा टीबी के लिए अपना उपचार पूरा करने की संभावना चार गुना कम है।
- यहां तक कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के गनियारी में जन स्वास्थ्य सहयोग अस्पताल में एक टीम के कार्य तथा निष्कर्षों ने टीबी के उच्च जोखिम के साथ पोषण की खराब स्थिति के संबंध को स्थापित किया।
- 2019 ग्लोबल टीबी रिपोर्ट ने कुपोषण को टीबी के विकास के लिए सबसे अधिक संबद्ध जोखिम कारक के रूप में अभिनिर्धारित किया।
- पोषण एवं टीबी के मध्य स्पष्ट संबंध के कारण, कई संगठनों ने टीबी रोधी दवाओं के साथ-साथ निदान रोगियों को अंडे, दूध पाउडर, दाल, बंगाल चना, मूंगफली और खाना पकाने का तेल उपलब्ध कराना प्रारंभ कर दिया।
- छत्तीसगढ़ राज्य ने भी मूंगफली, मूंग दाल एवं सोया तेल की आपूर्ति आरंभ की।
- अप्रैल 2018 से, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निक्षय पोषण योजना के तहत, सभी राज्यों ने टीबी रोगियों को भोजन खरीदने के लिए प्रति माह 500 रुपए की नकद सहायता देना प्रारंभ किया।
आगे की राह
- खाद्य टीका सभी नागरिकों के लिए, विशेषकर टीबी रोगियों के लिए संविधान के तहत जीवन के लिए एक प्रत्याभूत अधिकार है।
- इस प्रकार, भारत में टीबी की घटनाओं को कम करने तथा टीबी मृत्यु दर को कम करने के लक्ष्यों को कुपोषण की समस्या को हल किए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।