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जेंडर पे गैप, हार्ड ट्रुथ्स एंड एक्शन्स नीडेड- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां
- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
लैंगिक वेतन अंतर चर्चा में क्यों है?
- हाल ही में, संपूर्ण विश्व लोगों ने तीसरा अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस 2022 मनाया।
- अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस 2022 प्रत्येक वर्ष 18 सितंबर को पड़ता है।
- एक देश में भारत का आकार एवं विविधता, विषमताएं अभी भी देश के श्रम बाजार में मौजूद हैं।
लैंगिक वेतन अंतर पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव
- रोजगार एवं आय की हानि के मामले में कोविड -19 महामारी का महिला श्रमिकों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
- जबकि महामारी के पूर्ण प्रभाव का अभी पता नहीं चल पाया है, यह स्पष्ट है कि इसका प्रभाव विषम रहा है, जिसमें महिलाएं अपनी आय सुरक्षा के मामले में सर्वाधिक बुरी तरह प्रभावित हैं।
- यह आंशिक रूप से पारिवारिक उत्तरदायित्व के लैंगिक विभाजन के साथ संयुक्त रूप से कोविड-19 से प्रभावित क्षेत्रों में उनके प्रतिनिधित्व के कारण है।
- अनेक महिलाएं महामारी के दौरान बच्चों एवं बुजुर्गों की पूर्णकालिक देखभाल में लौट आईं, ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका छोड़ दी।
- अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन/ILO) की “वैश्विक श्रम रिपोर्ट 2020-21”: यह सुझाव देती है कि संकट ने पारिश्रमिक पर भारी दबाव डाला तथा पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल पारिश्रमिक को अनुपातहीन रूप से प्रभावित किया।
- महिलाओं के लिए वेतन में इस व्यापक कमी का तात्पर्य है कि पूर्व से मौजूद लैंगिक वेतन अंतर अधिक व्यापक हो गया है।
भारत में लैंगिक वेतन अंतर
- भारत में समय के साथ लैंगिक वेतन अंतर को समाप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, अंतर अंतरराष्ट्रीय मानकों द्वारा उच्च बना हुआ है।
- 1993-94 में भारतीय महिलाओं ने अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 48% कम आय अर्जित की।
- तब से, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस/NSSO) के श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में यह अंतर घटकर 28% रह गया।
- महामारी ने दशकों की प्रगति को प्रतिलोमित कर दिया क्योंकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ( पीरियोडिक लेबर फॉर सर्वे/पीएलएफएस) 2020-21 के आरंभिक अनुमानों में 2018-19 और 2020-21 के मध्य 7% की वृद्धि हुई है।
- आंकड़े आगे बताते हैं कि महामारी के दौरान महिलाओं को प्राप्त होने वाले पारिश्रमिक में तेजी से गिरावट ने पुरुषों को प्राप्त पारिश्रमिक में तीव्र वृद्धि की तुलना में इस गिरावट में योगदान दिया, जिसके लिए तत्काल नीति पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
लैंगिक वेतन अंतर के कारण
- सामान्य कारण: जबकि शिक्षा, कौशल या अनुभव जैसी व्यक्तिगत विशेषताएं लैंगिक वेतन अंतर के हिस्से की व्याख्या करती हैं, लैंगिक वेतन अंतर का एक बड़ा हिस्सा अभी भी विशुद्ध रूप से किसी के लिंग या लैंगिक आधार पर विभेद के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- लिंग आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं में शामिल हैं:
- महिलाओं को समान मूल्य के कार्य के लिए कम मजदूरी का भुगतान;
- अत्यधिक नारीवादी व्यवसायों एवं उद्यमों में महिलाओं के कार्य का कम मूल्यांकन, तथा
- मातृत्व वेतन अंतर – गैर-माताओं की तुलना में माताओं के लिए निम्न पारिश्रमिक।
लैंगिक वेतन अंतर को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र ने अपने कार्रवाईयों के केंद्र में लैंगिक असमानता के विभिन्न रूपों को समाप्त करने की चुनौती रखी है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपने संविधान एवं महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (कॉन्स्टिट्यूशन एंड कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन/CEDAW) में ‘समान मूल्य के कार्य के लिए समान वेतन’ को सम्मिलित किया है।
- कॉन्स्टिट्यूशन एंड कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन लैंगिक समानता को साकार करने एवं महिलाओं तथा बालिकाओं के मध्य विभेद एवं असमानताओं के प्रतिच्छेदन रूपों को संबोधित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय विधिक ढांचा प्रदान करता है।
- संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 8 2030 तक “युवा व्यक्तियों एवं विकलांग व्यक्तियों सहित सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिए पूर्ण एवं उत्पादक रोजगार तथा कार्य की उचित दशाएं प्राप्त करना एवं समान मूल्य के कार्य के लिए समान वेतन” प्राप्त करना है।
- सतत विकास लक्ष्य 8 के समर्थन में, समान वेतन अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (इक्वल पे इंटरनेशनल कोएलिशन/EPIC), 2017 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, यूएन वूमेन तथा ओईसीडी के नेतृत्व में एक बहु-हितधारक पहल के रूप में प्रारंभ किया गया था, जो प्रत्येक स्थान पर महिलाओं एवं पुरुषों के लिए समान कार्य हेतु समान वेतन प्राप्त करना चाहता है।
लैंगिक वेतन अंतर को समाप्त करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम
- विधिक उपाय: भारत 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू करने वाले अग्रणी देशों में से एक था एवं इसके बाद 1976 में समान पारिश्रमिक अधिनियम को अंगीकृत किया गया था।
- 2019 में, भारत ने दोनों विधानों में व्यापक सुधार किए तथा पारिश्रमिक पर संहिता को अधिनियमित किया।
- मनरेगा योजना की भूमिका: साक्ष्य से ज्ञात होता है कि 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट/मनरेगा) ने ग्रामीण महिला श्रमिकों को लाभान्वित किया तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लैंगिक वेतन अंतर को कम करने में सहायता की।
- प्रत्यक्ष रूप से, कार्यक्रम में भाग लेने वाली महिला कामगारों के वेतन स्तर को बढ़ाकर, एवं
- परोक्ष रूप से, उच्च आय के माध्यम से कृषि व्यवसायों में सम्मिलित महिलाओं को प्राप्त लाभ, क्योंकि मनरेगा ने देश में समग्र ग्रामीण एवं कृषि मजदूरी में तीव्र गति से वृद्धि में योगदान दिया।
- मातृत्व हितलाभ (संशोधन) अधिनियम 2017: इसने 10 या अधिक श्रमिकों को नियोजित करने वाले प्रतिष्ठानों में काम करने वाली सभी महिलाओं के लिए ‘वेतन सुरक्षा के साथ मातृत्व अवकाश’ को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया।
- इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले मध्यम तथा उच्च वेतन भोगियों में माताओं के मध्य मातृत्व वेतन अंतर को कम करने की संभावना है।
- स्किल इंडिया मिशन: स्किल इंडिया मिशन के माध्यम से महिलाओं को सीखने-से-आजीविका के अंतर एवं लैंगिक वेतन अंतर को पाटने के लिए बाजार से संबंधित कौशल से सुसज्जित करने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
- लैंगिक वेतन अंतर को पाटने के लिए समान मूल्य के कार्य के लिए समान वेतन आवश्यक है। कामकाजी महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय प्राप्त करने के साथ-साथ संपूर्ण देश के लिए आर्थिक विकास हेतु लैंगिक वेतन अंतर को समाप्त करना महत्वपूर्ण है।