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संपादकीय विश्लेषण: भारत-प्रशांत अवसर

हिंद-प्रशांत: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े एवं / या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

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हिंद-प्रशांत: संदर्भ

  • अनेक देशों की उपस्थिति एवं उनके हितों के कारण भारत-प्रशांत क्षेत्र में तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है
  • क्षेत्र की भू-राजनीति को कूटनीति एवं सैन्य तत्परता दोनों का उपयोग करते हुए अंतर-राज्यीय तनावों एवं संकटों के माध्यम से एक स्वतंत्र मार्ग निर्मित करना होगा।

 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की व्यापक रूपरेखा

  • प्रमुख प्रतिभागी: अमेरिका, चीन, जापान, भारत, जर्मनी, यूके, रूस, ऑस्ट्रेलिया एवं फ्रांस।
    • हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) की भू-राजनीति एवं भू-अर्थशास्त्र व्यापक पैमाने पर इन राष्ट्रों के  मध्य संबंधों की परस्पर क्रिया से आकार ग्रहण करेंगे।
  • अमेरिका-चीन संबंध: दोनों दिग्गजों के मध्य संबंध निम्नलिखित पर निर्भर करेगा: बीजिंग की दक्षिण/पूर्वी चीन नीति पर मतभेद, ताइवान के प्रति आक्रामक रुख, शिनजियांग में मानवाधिकारों का उल्लंघन, हांगकांग की नागरिकता का दमन एवं इंडो-पैसिफिक में निश्चयात्मक आर्थिक पहुंच।
  • चीन के दुस्साहसवाद को रोकना: क्वाड,ऑकस जैसे समूहों ने चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व की धारणा को प्रग्रहित कर लिया है।
    • इसके अतिरिक्त, जापान द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) भी इस क्षेत्र पर चीन के प्रभाव को रोकने के लिए कदम हैं।
    • भारत एवं ऑस्ट्रेलिया न केवल द्विपक्षीय रूप से बल्कि अन्य दो क्वाड शक्तियों के साथ भी संबंधों को गहन करने के पथ पर हैं।
  • क्षेत्रीय समूह: यूरोपीय संघ एवं आसियान को क्वाड-चीन अंतःक्रिया के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा।
    • भारत-प्रशांत में महत्वपूर्ण प्रतिभागी बनने हेतु यूरोपीय संघ एवं ब्रिटेन दोनों को चीन के साथ अधिक मुखर होना चाहिए एवं भारत जैसे भागीदारों के साथ अधिक सहयोग करना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, आसियान को अपने यथार्थवाद को संवर्धित करना चाहिए एवं समस्याओं से छुटकारा पाने की अपनी प्रवृत्ति को त्यागना चाहिए क्योंकि यह चीन की आक्रामकता एवं तेज होती महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता की गर्मी का सामना करने वाला पहला देश है।
  • वैश्विक शिखर सम्मेलन: 2022 में तीन प्रमुख शिखर सम्मेलन – जी 7, ब्रिक्स, जी 20 – का परिणाम भी क्षेत्र की राजनीति एवं कूटनीति को प्रभावित करेगा।

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भारत तथा भारत-प्रशांत

इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण बने रहने के लिए भारत के तीन प्रमुख दायित्व हैं।

  • पहला, यह सुनिश्चित करके क्वाड को सुदृढ़ करना कि समूह दिसंबर 2022 तक हिंद-प्रशांत देशों को कम से कम एक बिलियन वैक्सीन खुराक देने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे।
    • साथ ही, भारत को रूस के साथ अपने सिद्ध संबंधों की रक्षा करनी चाहिए एवं चीन के साथ वार्ता में लचीलापन दिखाना चाहिए।
  • दूसरा, भारत को प्रमुख दक्षिण पूर्व एशियाई भागीदारों-इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलीपींस एवं थाईलैंड के साथ सहयोग संवर्धन करना चाहिए, जबकि एक समूह के रूप में आसियान का अनुमनन करना चाहिए।
  • तीसरा, अफ्रीका के पूर्वी एवं दक्षिणी फलकों (क्षेत्रों) तथा हिंद महासागर के द्वीपीय राज्यों को निरंतर उच्च नीतिगत ध्यान और वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है।
    • एक स्पष्ट आर्थिक एवं व्यापार कार्य सूची, जिसमें कॉरपोरेट भारत को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में ध्वजवाहक बनने हेतु सम्मिलित करना एवं प्रोत्साहित करना, दीर्घकालिक लाभांश प्राप्त करने हेतुअत्यावश्यक है।

 

 

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