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महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास: संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास- संदर्भ
- महामारी के पश्चात के विश्व में, संपूर्ण विश्व की सरकारों, वैश्विक संस्थानों, उद्योग, शिक्षाविदों एवं गैर-लाभकारी संगठनों ने वैश्विक चुनौती से निपटने एवं देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण में सहायता करने हेतु हाथ मिलाया है।
- कोविड-19 महामारी ने संपूर्ण विश्व में व्यक्तियों के जीवन एवं आजीविका को पूर्ण रूप से प्रभावित किया है; एक आर्थिक विपदा जिसने अन्य बातों के अतिरिक्त विकास, व्यापार एवं निवेश तथा रोजगार को दुष्प्रभावित किया।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास: कोविड-19 का प्रभाव
- आर्थिक प्रभाव: कोविड महामारी ने आर्थिक विपदा उत्पन्न की है, जिसने विकास, व्यापार एवं निवेश तथा रोजगार सहित अन्य को दुष्प्रभावित किया है।
- वृहद स्तर पर प्रोत्साहन पैकेजों से बहिर्गमन से आर्थिक एवं वित्तीय अस्थिरता के जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं।
- असमानता का गहन होना: कोविड-19 ने देशों के साथ-साथ देशों के भीतर भी आय की असमानता में वृद्धि कर दी है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान: महामारी ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को गंभीर रूप से बाधित कर दिया एवं वैश्विक व्यापार प्रक्षेपवक्र को अधोमुखी (नीचे की ओर) मार्ग पर स्थापित कर दिया।
- संरचनात्मक परिवर्तन: भविष्य में कुछ संरचनात्मक परिवर्तन स्थायी होने की संभावना है एवं यह डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए विशेष रूप से सत्य है। उदाहरण के लिए, टेलीमेडिसिन, सुदूर कार्य (रिमोट वर्क) एवं ई- अधिगम (ई-लर्निंग), वितरण (डिलीवरी) सेवाएं इत्यादि।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास:- भारत की भूमिका
- आर्थिक सुधार: भारत के हालिया सुधारों, महामारी से निपटने में भूमिका एवं अन्य कारकों के मध्य स्टार्टअप जीवंतता ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया है।
- ये सुधार भारत को तेजी से विकास पथ प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं, बशर्ते कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ इसका एकीकरण हो एवं व्यापार को रणनीतिक तीव्रता प्राप्त हो।
- कोविड-19 संकट के दौरान निभाई गई नेतृत्व की भूमिका:
- अपने नागरिकों की सुरक्षा के अतिरिक्त, भारत ने विश्व के 150 से अधिक देशों को चिकित्सा आपूर्ति एवं उपकरण उपलब्ध कराएं।
- भारत ने अपने स्वयं के नागरिकों के लिए व्यापक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम प्रारंभ करने के अतिरिक्त, कोविड-19 टीकों की आपूर्ति में भी नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई।
- भारत जलवायु परिवर्तन सहित अपनी अन्य वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने हेतु गंभीर कार्रवाई कर रहा है, जहां इसके लक्ष्यों से फर्क पड़ेगा।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास- आर्थिक सुधार के सकारात्मक संकेत
- इस वर्ष के लिए, व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन/द यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) 2020 की तुलना में वैश्विक उत्पादों के व्यापार के मूल्य में 4% की वृद्धि का संकेत देता है।
- विश्व व्यापार के कोविड-19 से पूर्व की स्थिति की तुलना में लगभग 15% अधिक रहने की संभावना है।
- 2021 की पहली छमाही में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह अनुमानित 852 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो प्रत्याशित प्रतिक्षेप गति से अधिक मजबूत दिखा रहा है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में एफडीआई प्रवाह में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2021 की पहली छमाही में कुल 427 बिलियन डॉलर थी।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास- आगे की राह
- अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता एवं सहयोग: आर्थिक विकास सुनिश्चित करने, निवेश के माहौल की प्रतिस्पर्धात्मकता का निर्माण करने, सतत विकास पथ सुनिश्चित करने एवं प्रौद्योगिकी गति वर्धन को अपनाने हेतु।
- भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित साझेदारी शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु हो सकता है।
- वैक्सीन विकास एवं जीनोम अनुक्रमण के लिए वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के अभिसरण ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में एक नई मिसाल कायम की है।
- वैश्विक साझेदारी सुनिश्चित करना: वैश्विक साझेदारी महामारी एवं अन्य मानव निर्मित तथा प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न खतरों से निपटने हेतु लोचशीलता स्थापित करने सहायता करेगी।
- वैश्विक भागीदारी सामान्य नियमों एवं मानकों पर सहमत होकर और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके आपसी विश्वास एवं समझ निर्मित करने में सहायता करती है।
- व्यापार एवं निवेश पर ध्यान देना: यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड -19 महामारी के कारण अस्थायी आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के बावजूद, व्यापार एवं निवेश प्रवाह अनेक देशों के लिए विकास का एक इंजन सिद्ध हुआ है।
- उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों की बेहतर सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय दोनों स्तरों पर व्यापार साझेदारी को सुगम बनाना।
- मुक्त एवं पारदर्शी बाजारों को बढ़ाने, तकनीकी सहायता एवं जटिल प्रक्रियाओं तथा व्यवस्थापन को कम करने के लिए व्यापार प्रसुविधा पर सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- आर्थिक असमानता को हल करना: विकास प्रक्रिया की दीर्घकालिक धारणीयता की प्राप्ति हेतु देशों के साथ-साथ देशों के मध्य आर्थिक असमानता को हल किया जाना चाहिए।
- धारणीय एवं आपदा रोधी आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण: देशों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, विशेष रूप से प्रभावी एवं समय पर चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु।
- उद्यमशीलता एवं नवाचार का एक पारिस्थितिकी तंत्र: इसे लक्षित नीतियों एवं अंतःक्षेपों के साथ निर्मित किया जाना चाहिए जिसका उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि करना एवं रोजगार के अवसर सृजित करना है।
- प्रौद्योगिकी का न्याय संगत रूप से अंगीकरण सुनिश्चित करके तकनीकी अंतराल को समाप्त करना: डिजिटल अर्थव्यवस्था ने कार्य के भविष्य एवं व्यापार परिदृश्य को पूर्ण रूप से रूपांतरित कर दिया है।
- इसके लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों एवं उपकरणों हेतु न्याय संगत अनुकूलन, सुदृढ़ आधारिक अवसंरचना का निर्माण एवं व्यावसायिक परिवर्तन की आवश्यकता है।
- कौशल विकास एवं कार्मिक प्रशिक्षण, शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश तथा क्षमता निर्माण सुनिश्चित करके तकनीकी अंतराल को कम किया जा सकता है।
- सतत समाधान के निर्माण हेतु अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन एवं सहयोग: यथा हरित प्रौद्योगिकी, संसाधन दक्षता, स्थायी वित्त, इत्यादि।
- सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति एवं सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने हेतु इन सतत समाधानों को प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।
महामारी-पश्चात विश्व में आरंभिक प्रयास : निष्कर्ष
- महामारी के पश्चात के विश्व में, भारत के लिए अपने निवेश माहौल में सुधार करना एवं क्षेत्रों एवं प्रांतो में अपनी निर्यात क्षमताओं को व्यवस्थित रूप से लक्षित करना महत्वपूर्ण होगा।
- व्यापारिक सुगमता एवं प्रमुख बाजारों के साथ नए मुक्त व्यापार समझौते इसे व्यापार एवं निवेश साझेदारी के माध्यम से विश्व के साथ निकटता से एकीकृत करने में सहायता करेंगे।