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वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन हेतु प्रभावी पद्धतियों की आवश्यकता है
- स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हाल ही में आयोजित कॉप 26 में बारबाडोस के प्रधानमंत्री के संबोधन ने विशेष ध्यान आकर्षित किया है।
- उन्होंने कहा कि “जीवन एवं आजीविका” के संबंध में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की सीमा को मापने के साथ-साथ महत्वपूर्ण अनुकूलन वित्त प्रदान करने में विफलता अनैतिक थी।
- इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) जलवायु जोखिम को प्रतिकूल प्रभावों की संभावना के रूप में परिभाषित करता है, जब गंभीर जलवायु घटनाएं अतिसंवेदनशील पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक परिस्थितियों के साथ अंतःक्रिया करती हैं।
- मात्रात्मक रूप से, यह किसी जलवायु घटना के घटित होने की संभावना एवं उसके प्रतिकूल परिणामों का उत्पाद है।
वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक
- जर्मनवाच द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (जीसीआरआई) के नवीनतम संस्करण ने प्रचंड मौसमी घटनाओं एवं 2000-2019 से संबंधित सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के प्रभाव के आधार पर 180 देशों को श्रेणीकृत किया।
- जर्मनवॉच के अनुसार, रैंकिंग का उद्देश्य देशों को भविष्य में और अधिक निरंतर एवं / या गंभीर जलवायु-संबंधी घटनाओं की संभावना के बारे में चेतावनी देना है।
- चरम घटनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए यह सूचकांक ऐतिहासिक डेटा का उपयोग करता है। यद्यपि, इसका उपयोग भविष्य के जलवायु प्रभाव के बारे में रैखिक पूर्वानुमान हेतु नहीं किया जा सकता है।
जीसीआरआई भ्रंश रेखाएं
- प्रथम, जीसीआरआई चार प्रमुख संकेतकों के आधार पर देशों की रैंकिंग करता है:
- मौतों की संख्या;
- प्रति 1,00,000 निवासियों पर मौतों की संख्या;
- क्रय शक्ति समता में हानियों का योग (यू.एस. डॉलर में); एवं
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की प्रति इकाई हानि।
- इन संकेतकों में से दो निरपेक्ष हैं जबकि अन्य दो सापेक्ष हैं।
- यद्यपि, जीसीआरआई रिपोर्ट इन स्थूल संकेतकों के चयन हेतु कोई औचित्य प्रदान नहीं करती है।
- द्वितीय, सूचकांक बहिष्करण त्रुटियों एवं चयन पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।
- मिश्रित संकेतकों का निर्माण स्थूल संकेतकों के स्थान पर सूक्ष्म संकेतकों का उपयोग करके बेहतर तरीके से किया जाता है, जो हानि को मापते हैं क्योंकि जीडीपी पर तत्वों के नुकसान के प्रभाव को पृथक करना त्रुटियों से परिपूर्ण होता है।
- इसके स्थान पर, अनेक प्रमुख सूक्ष्म संकेतक जैसे कि घायल हुए व्यक्तियों की कुल संख्या, पशुधन की हानि, सार्वजनिक एवं निजी आधारिक अवसंरचना की हानि, फसल की हानि एवं अन्य जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के परिणामस्वरूप समग्र नुकसान का आकलन करने हेतु बेहतर प्रत्याशी हैं।
- तृतीय, सूचकांक मौसम संबंधी घटनाओं जैसे तूफान, बाढ़, अत्यधिक तापमान एवं निक्षेपों की गतिशीलता की जानकारी प्रदान करने हेतु उत्तरदायी है।
- यद्यपि, यह भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या सुनामी जैसी भूवैज्ञानिक घटनाओं का परित्याग कर देता है, जो संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं एवं जिनके आर्थिक एवं मानवीय प्रभाव हो सकते हैं।
- चतुर्थ, जीसीआरआई के अंतर्गत रैंकिंग, म्यूनिख रे की नैट कैट सर्विस द्वारा एकत्र किए गए डेटा के आधार पर की जाती है, जो वास्तविक स्तर पर मान्य नहीं है।
- आर्थिक नुकसान के संबंध में डेटा अंतराल अनुभव, म्यूनिखरे की प्रचलित बौद्धिक संपदा एवं जोखिम वाले तत्वों के बाजार मूल्य पर आधारित हैं जो आर्थिक नुकसान के सर्वोत्तम अनुमानित मूल्यों पर हैं।
कार्रवाई एवं प्रतिक्रिया में विलंब
- जलवायु परिवर्तन के संबंध में कार्रवाई एवं प्रतिक्रिया के मध्य अनिश्चितता, मापन एवं विलंब के मुद्दों को ध्यान में रखे बिना जलवायु जोखिम के माप एवं प्रबंधन पर कोई भी चर्चा अधूरी है।
- अतः, जलवायु परिवर्तन को एक विस्तृत जोखिम मूल्यांकन ढांचे के भीतर सर्वोत्तम रूप से प्रबंधित किया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बेहतर ढंग से निपटने हेतु जलवायु सूचना का उपयोग करता है।
- इस संदर्भ में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सूचना प्रणाली (एनडीएमआईएस) पर भारत का नवीनतम उपागम (मॉड्यूल) आपदाओं के कारण हुई क्षति एवं नुकसान को अभिलेखित करता है एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क के लक्ष्यों का अनुश्रवण करता है।
- एनडीएमआईएस दैनिक आधार पर मौसम एवं भूगर्भीय घटनाओं के कारण सामाजिक एवं आधारित अवसंरचना क्षेत्रों में मृत्यु, क्षति, कुप्रभावित आबादी जैसे मापदंडों पर विवरण प्राप्त करता है।
- एनडीएमआईएस द्वारा प्रग्रहित किए गए डेटा में सभी प्रमुख जलवायु घटनाएं शामिल हैं।
- जलवायु जोखिम सूचना उपयोगकर्ताओं एवं प्रदाताओं के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रभावी दृष्टिकोण एवं सिद्धांतों को परिनियोजित करने के साथ-साथ प्रभावी प्रबंधन कार्यों के कार्यान्वयन को सक्षम करने से, भारत को सेंडाई फ्रेमवर्क में परिकल्पित लक्ष्यों पर छलांग लगाने की अनुमति प्रदान करेगा।