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अनुपयुक्त मंच- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध- महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, एजेंसियां एवं मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
- जीएस पेपर 3: पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण।
अनुपयुक्त मंच- जलवायु परिवर्तन पर प्रारूप प्रस्ताव
- हाल ही में, भारत ने जलवायु परिवर्तन पर एक प्रारूप प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के विरुद्ध मतदान किया।
- जलवायु परिवर्तन पर प्रारूप के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्यों का समर्थन प्राप्त था, किंतु भारत एवं रूस (उसके पास वीटो शक्तियां हैं) ने इसे अस्वीकार कर दिया जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया।
अनुपयुक्त मंच- भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जलवायु प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया
- पृष्ठभूमि: जर्मनी ने विगत वर्ष इसी तरह के एक प्रारूप को प्रसारित किया था जिसे सुरक्षा परिषद में मतदान के लिए कभी नहीं रखा गया था क्योंकि ट्रम्प प्रशासन ने इसका विरोध किया था।
- जलवायु परिवर्तन पर प्रारूप प्रस्ताव के बारे में: जलवायु परिवर्तन पर प्रारूप प्रस्ताव आयरलैंड एवं नाइजर द्वारा लाया गया था। इसके माध्यम से विकसित विश्व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्यसूची में “जलवायु सुरक्षा” को सम्मिलित करने पर बल दे रहे हैं।
- पक्ष में तर्क: जलवायु परिवर्तन विश्व में सुरक्षा का संकट उत्पन्न कर रहा है, जो भविष्य में जल के अभाव, प्रवास एवं आजीविका के विनाश के साथ और बढ़ जाएगा।
- समर्थकों का मानना है कि इस कारण से जलवायु सुरक्षा को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिदेश में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- विपक्ष के आधार:
- यह यूएनएससी के अधिदेश को उन क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिए भारत के दीर्घ काल से विरोध का प्रतिबिंब है जो पहले से ही अन्य बहुराष्ट्रीय मंचों द्वारा निपटाए जा रहे हैं।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्राथमिक उत्तरदायित्व “अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखना” है तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे इसके दायरे से बाहर हैं।
अनुपयुक्त मंच- वर्तमान तंत्र
- यूएनएफसीसीसी की भूमिका: वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी, यूएएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) में चर्चा की जा रही है।
- यूएनएफसीसीसी में 190 से अधिक सदस्य हैं।
- यूएनएफसीसीसी ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण रखा है।
- यूएनएफसीसीसी का प्रदर्शन: इसकी संरचना ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रगति की है। यह वह प्रक्रिया है जिसके कारण निम्नलिखित अस्तित्व में आए-
- क्योटो प्रोटोकॉल,
- पेरिस समझौता एवं
- हालिया कॉप 26 शिखर सम्मेलन (ग्लासगो शिखर सम्मेलन)
- मुख्य चिंता: यूएनएफसीसीसी सम्मेलनों में निर्णय निर्माण मंद है एवं जलवायु परिवर्तन तथा संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई तीव्रता से होनी चाहिए।
जलवायु सुरक्षा को यूएनएससी के अधिदेश के अंतर्गत लाने का प्रभाव
- असंतुलन उत्पन्न करना: यह विश्व के औद्योगिक देशों, जो वीटो पावर रखते हैं, को जलवायु से संबंधित सुरक्षा मुद्दों पर भविष्य की कार्रवाई पर निर्णय लेने के लिए और अधिक शक्तियां प्रदान करेगा।
- आर्थिक विषमता: जलवायु परिवर्तन को सुरक्षा के चश्मे से देखना गलत है। प्रत्येक देश को हरित अर्थव्यवस्था में पारगमन में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- विशिष्ट वर्ग प्रतिनिधित्व: यूएनएससी में मात्र पांच स्थायी सदस्य हैं जिनके पास वीटो शक्तियां हैं। जलवायु सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को मात्र उनके निर्णय निर्माण के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता है।
अनुपयुक्त मंच- आगे की राह
- पूर्व प्रतिबद्धताओं को पूरा करना: विकसित देश, सभी बड़े प्रदूषक, जलवायु कार्रवाई के संबंध में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाए हैं।
- उन्हें जलवायु न्याय एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें शीघ्र से शीघ्र पूरा करना चाहिए।
- अल्प विकसित एवं विकासशील देशों को सहायता: विकसित देशों को अल्प विकसित एवं विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए।
- यह उन्हें अपने जलवायु वादों को निभाने हेतु प्रोत्साहित करेगा।
- यूएनएफसीसीसी में सुधार: यूएनएफसीसीसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सदस्य देशों, विशेष रूप से शक्तिशाली देशों द्वारा विगत सम्मेलनों में किए गए वादों को पूरा किया जाए।
- यूएनएफसीसीसी मंच को जलवायु संबंधी सुरक्षा मुद्दों को समाविष्ट करने हेतु चर्चा के दायरे का विस्तार करना चाहिए।