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भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र: प्रासंगिकता
- जीएस 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण तथा नवीन तकनीक का विकास।
भू-स्थानिक क्षेत्र: संदर्भ
- विगत वर्ष 15 फरवरी को, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत को एक लाख करोड़ रुपये की भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था तक ले जाने के लिए भू-स्थानिक डेटा हेतु उदार दिशानिर्देशों की घोषणा की।
भू-स्थानिक क्षेत्र भारत: प्रमुख बिंदु
- यह वर्ष ऐतिहासिक कदम की प्रथम वर्षगांठ का प्रतीक है जिसे एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में माना जाता था जब भारतीयों के लिए भू-स्थानिक क्षेत्र को पूर्ण रूप से नियंत्रण मुक्त करने हेतु नए दिशा निर्देश प्रभावी हुए।
भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र
- भारतीय सर्वेक्षण (एसओआई), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (आरएसएसी) एवं भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के साथ भारत में भू-स्थानिक में एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र उपस्थित है।
- स्वतंत्रता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री के भाषण तथा केंद्रीय बजट में भू-स्थानिक के उल्लेख ने भू-स्थानिक क्षेत्र में आवश्यक कोलाहल उत्पन्न कर कर दी है।
- मैप माय इंडिया (MapmyIndia) की आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग/आईपीओ) की अति सदस्यता जमीनी गतिविधि का एक उदाहरण था।
- अन्य ध्यान देने योग्य गतिविधि भारत में जेनेसिस इंटरनेशनल द्वारा एक शहरी मानचित्रण कार्यक्रम का शुभारंभ था।
- हालांकि, पूर्ण लाभ अभी तक जनता तक नहीं पहुंचे हैं; न ही देश की जीडीपी में इसका ज्यादा योगदान है।
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भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र: प्रमुख मुद्दे
- भारत में एक बड़े भू-स्थानिक बाजार का अभाव: सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में संभावित उपयोगकर्ताओं के मध्य जागरूकता के अभाव के कारण भारत की क्षमता एवं आकार से जुड़े पैमाने पर भू-स्थानिक सेवाओं तथा उत्पादों की कोई मांग नहीं है।
- संपूर्ण सूची स्तम्भ (पिरामिड) में कुशल जनशक्ति की कमी।
- बुनियादी डेटा की अनुपलब्धता, विशेष रूप से उच्च-विभेदन पर।
- डेटा साझाकरण तथा सहयोग पर स्पष्टता की कमी सह-निर्माण एवं संपत्ति को अधिकतम करने से रोकती है।
- भारत की समस्याओं को हल करने के लिए विशेष रूप से निर्मित कोई रेडी-टू-यूज़ समाधान नहीं।
भारत में भू-स्थानिक बाजार: आवश्यक कदम
- दिशा निर्देश प्रकाशित करें: संपूर्ण नीति दस्तावेज को प्रकाशित करने की आवश्यकता है एवं सरकारी तथा निजी उपयोगकर्ताओं को चीजों से अवगत कराया जाना चाहिए।
- ओपन डेटा शेयरिंग प्रोटोकॉल: सरकारी विभागों के पास उपलब्ध डेटा को अनलॉक किया जाना चाहिए, तथा आंकड़ों के साझाकरण (डेटा शेयरिंग) को एक ओपन डेटा शेयरिंग प्रोटोकॉल के माध्यम से प्रोत्साहित एवं सुगम बनाया जाना चाहिए।
- मानकों का विकास: सरकार को विकासशील मानकों में निवेश करने की आवश्यकता है एवं मानकों को अपनाने को अधिदेशित करना चाहिए।
- जियो-पोर्टल स्थापित करना: सभी सार्वजनिक-वित्त पोषित डेटा को सेवा मॉडल के रूप में बिना किसी शुल्क या नाममात्र के शुल्क के डेटा के माध्यम से सुलभ बनाने हेतु एक भू-पोर्टल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- संपूर्ण भारत में बुनियादी डेटा सृजित करना: इसमें भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल उन्नयन मॉडल ( इंडियन नेशनल डिजिटल एलिवेशन मॉडल/इंडेम), शहरों के लिए डेटा स्तर तथा प्राकृतिक संसाधनों का डेटा भी सम्मिलित होना चाहिए।
- स्टार्टअप्स: सॉल्यूशन डेवलपर्स एवं स्टार्ट-अप्स को विभागों में विभिन्न व्यावसायिक प्रक्रियाओं के लिए समाधान ढांचा (सॉल्यूशन टेम्प्लेट) निर्मित करने हेतु लगाया जाना चाहिए।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी: स्थानीय प्रौद्योगिकी तथा समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए एवं गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- स्थानीय क्लाउड: चूंकि नए दिशा निर्देश उच्च परिशुद्धता वाले डेटा को विदेशी क्लाउड में संग्रहीत होने से रोकते हैं, अतः स्थानीय रूप से एक भू-स्थानिक डेटा क्लाउड विकसित करने एवं सेवा के रूप में समाधान की सुविधा की आवश्यकता है।
- विनियमन: एसओआई एवं इसरो जैसे राष्ट्रीय संगठनों को विनियमन तथा राष्ट्र की सुरक्षा एवं वैज्ञानिक महत्व से संबंधित परियोजनाओं का उत्तरदायित्व सौंपा जाना चाहिए।
- शैक्षणिक कार्यक्रम: भारत को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में भी भू-स्थानिक में स्नातक कार्यक्रम आरंभ करना चाहिए। इनके अतिरिक्त, एक समर्पित भू-स्थानिक विश्वविद्यालय होना चाहिए।
भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र: आगे की राह
- देश में भू-स्थानिक क्षेत्र, निवेश के लिए सही स्थिति में है। हालांकि, चर्चा किए गए मुद्दों पर स्पष्टता एवं एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण आवश्यक है।
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