द हिंदू संपादकीय विश्लेषण: यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू अखबारों के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा हेतु बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में सहायता करता है। आज का हिंदू संपादकीय विश्लेषण ‘उच्च न्यायालयों में पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित लगभग आधे मामले’ भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के बढ़ते मामलों के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करने का प्रयत्न करता है।
हाल ही में जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार, 2 जनवरी 2023 तक भारतीय उच्च न्यायालयों में लगभग आधे मामले पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (उत्तर प्रदेश) तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय (पश्चिम बंगाल एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह) में 63% से अधिक मामले पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित थे। दूसरी ओर, त्रिपुरा, सिक्किम एवं मेघालय जैसे पूर्वोत्तर भारत के उच्च न्यायालयों में पाँच वर्षों से अधिक समय से 10% से भी कम मामले लंबित थे।
न्यायालयों में लंबित मुकदमों के लिए मांग एवं आपूर्ति के मुद्दे को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
जबकि न्यायालयों में दायर किए जाने वाले वाद अथवा मामलों की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है, इन मामलों की देखरेख करने वाले न्यायाधीशों की संख्या स्थिर बनी हुई है अथवा मामलों में वृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ती है।
दिसंबर 2022 तक, प्रमुख भारतीय राज्यों के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के अनेक पद रिक्त थे।
इस मांग-आपूर्ति बेमेल के परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालयों में मामलों के निष्पादन की दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
वाद/मामला निस्तारण दर का निर्धारण एक वर्ष में निपटाए गए मामलों की संख्या एवं उसी वर्ष दर्ज किए गए मामलों की संख्या की गणना करके किया जाता है।
भारत में, 2022 में दर्ज किए गए प्रत्येक 100 मामलों में से, उसी वर्ष केवल 95 का समाधान किया गया, जिसके परिणामस्वरूप 95% की निस्तारण दर हुई, जबकि शेष 5% को बैक लॉग में जोड़ा गया। हालांकि, 2021 में 83% एवं 2020 में 77% के साथ, महामारी के वर्षों के दौरान निस्तारण दर कम थी।
गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की रिक्ति दर 40% से अधिक थी, निस्तारण दर लगभग 80% या उससे कम थी। इसके विपरीत, भले ही त्रिपुरा एवं मणिपुर में अपेक्षाकृत उच्च रिक्ति दर (>40%) थी, उनकी निस्तारण दर, संभवतः नए मामलों की कम आमद के कारण 100% से अधिक थी।
2017 एवं 2022 में उच्च न्यायालय के प्रति न्यायाधीश लंबित मामलों की औसत संख्या के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए पाया गया कि-
न्यायिक रिक्तियों को शीघ्र भरना आवश्यक है, किंतु भारतीय न्यायिक प्रणाली, विशेष रूप से उच्च न्यायालयों पर बोझ को कम करने के साधन के रूप में वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र का पता लगाना भी महत्वपूर्ण है।
प्र. भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की परिभाषा क्या है?
उत्तर. लंबित वाद अथवा केस पेंडेंसी से तात्पर्य उन मामलों की संख्या से है जो किसी भी समय भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित हैं। यह उस समय की अवधि है जब एक न्यायालय में मामला दायर किया जाता है और जब इसका समाधान किया जाता है।
प्र. भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के पीछे प्रमुख कारण क्या हैं?
उत्तर. भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के पीछे प्रमुख कारणों में न्यायाधीशों की कमी, पुरानी कानूनी प्रक्रियाएं, मामलों की सुनवाई में विलंब तथा आधुनिक तकनीक एवं बुनियादी ढांचे की कमी शामिल हैं।
प्र. किन भारतीय उच्च न्यायालय में लंबित मामलों की दर सबसे अधिक एवं सबसे कम है?
उत्तर. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार, राजस्थान एवं इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की दर सबसे अधिक है, जबकि त्रिपुरा, सिक्किम एवं मेघालय सहित पूर्वोत्तर भारत के उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की दर सबसे कम है।
प्र. वाद निस्तारण दर क्या है और यह भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर. वाद निस्तारण दर एक वर्ष में निपटाए गए मामलों की संख्या है, जिसे उस वर्ष दर्ज किए गए मामलों की संख्या के विरुद्ध मापा जाता है। यदि अदालतें प्राप्त होने वाले प्रत्येक 100 मामलों में से 100 से अधिक को हल करने में असमर्थ हैं, कमी एक संचित कार्य (बैकलॉग) की ओर ले जाती है, जो बदले में उनके लंबित मामलों के भार (केस लोड) में वृद्धि करती है।
प्र. कोविड-19 महामारी भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर. कोविड-19 महामारी ने भारतीय उच्च न्यायालयों में मामलों की लंबितता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि लॉकडाउन एवं सामाजिक दूरी के उपायों के कारण अदालतें पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही थीं।
लंबित वाद अथवा केस पेंडेंसी से तात्पर्य उन मामलों की संख्या से है जो किसी भी समय भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित हैं। यह उस समय की अवधि है जब एक न्यायालय में मामला दायर किया जाता है और जब इसका समाधान किया जाता है।
भारतीय उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के पीछे प्रमुख कारणों में न्यायाधीशों की कमी, पुरानी कानूनी प्रक्रियाएं, मामलों की सुनवाई में विलंब तथा आधुनिक तकनीक एवं बुनियादी ढांचे की कमी शामिल हैं।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार, राजस्थान एवं इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की दर सबसे अधिक है, जबकि त्रिपुरा, सिक्किम एवं मेघालय सहित पूर्वोत्तर भारत के उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की दर सबसे कम है।
वाद निस्तारण दर एक वर्ष में निपटाए गए मामलों की संख्या है, जिसे उस वर्ष दर्ज किए गए मामलों की संख्या के विरुद्ध मापा जाता है। यदि अदालतें प्राप्त होने वाले प्रत्येक 100 मामलों में से 100 से अधिक को हल करने में असमर्थ हैं, कमी एक संचित कार्य (बैकलॉग) की ओर ले जाती है, जो बदले में उनके लंबित मामलों के भार (केस लोड) में वृद्धि करती है।
कोविड-19 महामारी ने भारतीय उच्च न्यायालयों में मामलों की लंबितता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि लॉकडाउन एवं सामाजिक दूरी के उपायों के कारण अदालतें पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही थीं।
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