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द हिंदू संपादकीय विश्लेषण, राजनेताओं की निरर्हता

द हिंदू संपादकीय विश्लेषण, राजनेताओं की निरर्हता

आज का द हिंदू संपादकीय विश्लेषण इस मुद्दे पर आधारित है कि क्या दोषसिद्धि के लिए नेताओं की निरर्हता अंतिम है या इसे रद्द किया जा सकता है।

 

मामला क्या है?

  • राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता पी.पी. मोहम्मद फैजल को कवारत्ती सत्र न्यायालय (केरल) ने 11 जनवरी को हत्या के प्रयास के लिए दोषी ठहराया था एवं 10 साल कैद की सजा सुनाई थी।
  • 13 जनवरी को, लोकसभा ने घोषणा की कि उन्हें दोष सिद्धि की तिथि से सांसद के रूप में निरर्ह घोषित कर दिया गया है।
  • 18 जनवरी को, भारत के चुनाव आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया/ईसीआई) ने 27 फरवरी को उस निर्वाचन क्षेत्र के लिए उपचुनाव की तारीख तय की, जिसकी औपचारिक अधिसूचना 31 जनवरी को जारी की जाएगी।
  • इस बीच, श्री फैजल ने अपनी दोषसिद्धि एवं सजा पर रोक के लिए केरल उच्च न्यायालय में अपील की, जिसे उच्च न्यायालय ने 25 जनवरी को निलंबित कर दिया।

केरल उच्च न्यायालय ने क्या कहा?

  • केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि दोषसिद्धि को निलंबित न करने का परिणाम न केवल श्री फैजल के लिए बल्कि राष्ट्र के लिए भी कठोर है।
    संसदीय चुनाव का खर्च देश को वहन करना होगा एवं लक्षद्वीप में विकासात्मक गतिविधियां भी  कुछ सप्ताह के लिए रुक जाएंगी।
  • निर्वाचित उम्मीदवार के पास मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल के अंत तक कार्य करने हेतु मात्र 15 माह होंगे। इन असाधारण एवं अपरिवर्तनीय परिणामों को देखते हुए, इसने अपील के निस्तारण तक उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया।
  • श्री फैजल ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की घोषणा को चुनौती दी। 30 जनवरी को, भारत के निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनाव को टाल रहा है।
  • अब प्रश्न यह है कि क्या श्री फैजल स्वतः ही लोकसभा की अपनी सदस्यता पुनः प्रारंभ कर देंगे। इसका उत्तर यह निर्धारित करने में निहित है कि क्या निरर्हता रद्द करना 25 जनवरी से प्रभावी होता है (जब उच्च न्यायालय ने सजा को निलंबित कर दिया था) अथवा क्या घड़ी को सजा एवं निरर्हता की तिथि में वापस लाया जा सकता है।

राजनेताओं की निरर्हता के लिए विशिष्ट प्रावधान

संविधान का अनुच्छेद 102

  • निरर्हता का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 102 में दिया गया है।
  • यह निर्दिष्ट करता है कि एक व्यक्ति को कुछ शर्तों के तहत चुनाव लड़ने एवं संसद का सदस्य होने के लिए निरर्ह घोषित किया जाएगा। शर्तों में शामिल हैं:
    • लाभ का पद धारण करना,
    • विकृत चित (अस्वस्थ मस्तिष्क) अथवा दिवालिया होना, या
    • भारत का नागरिक नहीं होना।
  • यह निरर्हताओं की शर्तों को निर्धारित करने के लिए संसद को कानून बनाने के लिए भी अधिकृत करता है। राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के लिए समान प्रावधान हैं।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है एवं दो वर्ष अथवा उससे अधिक के लिए कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे निरर्ह घोषित किया जाएगा।
  • व्यक्ति कारावास की अवधि एवं इसके अतिरिक्त अन्य छह वर्ष हेतु निरर्ह है।
  • मौजूदा सदस्यों के लिए अपवाद: मौजूदा सदस्यों के लिए एक अपवाद है; उन्हें अपील करने हेतु दोष सिद्धि की तिथि से तीन माह की अवधि प्रदान की गई है; अपील का निर्णय होने तक निरर्हता लागू नहीं होगी।

दोषसिद्धि के लिए निरर्हता अंतिम है या इसे रद्द किया जा सकता है, इस पर महत्वपूर्ण निर्णय

के. प्रभाकरन बनाम पी. जयराजन 2005

  • चुनावों एवं मौजूदा सदस्यों के लिए उम्मीदवारों के अलग-अलग व्यवहार को अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत चुनौती दी गई थी।
  • 2005 में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ (के. प्रभाकरन बनाम पी. जयराजन) ने अपना निर्णय दिया कि एक प्रत्याशी तथा एक मौजूदा सदस्य को निरर्ह घोषित करने के परिणाम अलग-अलग थे।
  • बाद के मामले में, विधायिका में दल की क्षमता अथवा संख्या बल बदल जाएगी एवं यदि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इससे उपचुनाव भी हो सकता है।
  • इसलिए दोनों वर्गों को अलग-अलग मानना ​​उचित था।
  • न्यायालय ने यह भी विचार किया कि क्या एक निरर्ह उम्मीदवार के मामले में जो बाद में बरी हो गया है, निरर्हता को पूर्वव्यापी प्रभाव से हटा दिया जाएगा। इसने कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके लिए चुनाव के परिणामों को रद्द करने की आवश्यकता होगी। अतः, निरर्हता को हटाना भविष्यलक्षी एवं भविष्य के चुनावों के लिए होगा।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)

  • 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 102 संसद को “संसद के किसी भी सदन के सदस्य के रूप में चुने जाने एवं बने रहने के लिए” किसी व्यक्ति की निरर्हता के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है।
  • इसने इस वाक्यांश की व्याख्या इस अर्थ में की कि जबकि संसद निरर्हता के लिए शर्तों को निर्दिष्ट कर सकती है, वे शर्तें उम्मीदवारों एवं मौजूदा सदस्यों पर समान रूप से लागू होंगी।
  • इसलिए, मौजूदा सदस्यों के लिए अलग से स्थापित किया गया अपवाद असंवैधानिक था।
  • निर्णय ने आगे अनुच्छेद 101 का हवाला दिया कि यदि संसद सदस्य को अनुच्छेद 102 के तहत निरर्ह घोषित किया गया था, तो ” उसका स्थान रिक्त हो जाएगा”।
  • अतः, निरर्हता स्वचालित थी एवं अनुच्छेद 102 की शर्तों को पूरा करने पर तत्काल प्रभाव पड़ता था।
  • फैसले में कहा गया है कि एक निरर्ह व्यक्ति अपनी दोष सिद्धि पर स्थगन प्राप्त कर सकता है एवं 2007 के  पूर्व के निर्णय का हवाला दिया कि स्थगन आदेश की तिथि से निरर्हता को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • निर्णय में, हालांकि, यह भी कहा गया है कि एक निरर्ह व्यक्ति अपनी दोष सिद्धि पर रोक प्राप्त कर सकता है एवं 2007 के पूर्व के निर्णयों का हवाला दिया कि निरर्हता को स्थगन आदेश की तिथि से समाप्त कर दिया जाएगा।

निष्कर्ष

लिली थॉमस के फैसले (2013) में निरर्ह होने पर तुरंत स्थान रिक्त करने की आवश्यकता होती है जबकि केरल उच्च न्यायालय ने पी.पी. मोहम्मद फैजल के वाद में यह सुनिश्चित करने का प्रयत्न किया है कि अपील का फैसला होने तक सांसद अपनी सीट बरकरार रखे। अपेक्षा है, शीर्ष न्यायालय मामले को स्पष्ट कर देगी क्योंकि यह समान मामलों को प्रभावित करेगा।

 

राजनेताओं की निरर्हता  के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्र. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एक सजायाफ्ता राजनेता के संदर्भ में क्या कहता है?

उत्तर. जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है एवं दो वर्ष अथवा उससे अधिक के लिए कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे निरर्ह घोषित कर दिया जाएगा।

 

प्र. लिली थॉमस निर्णय (2013) क्या है?

उत्तर. 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 102 संसद को “संसद के किसी भी सदन के सदस्य के रूप में चुने जाने एवं बने रहने के लिए” किसी व्यक्ति की निरर्हता के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है।

 

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FAQs

What Does The Representation of the People Act, 1951 Says On A Convicted Politician?

The Representation of the People Act, 1951 provides that a person will be disqualified if convicted and sentenced to imprisonment for two years or more.

What Is Lily Thomas Judgement(2013)?

In 2013, a two-judge Bench of the Supreme Court stated that Article 102 empowers Parliament to make law regarding disqualification of a person “for being chosen as, and for being, a member of either House of Parliament”.