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द हिंदू संपादकीय विश्लेषण| वन अधिकार एवं विरासत संरक्षण

आज के द हिंदू संपादकीय विश्लेषण की यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता

आज के हिंदू संपादकीय विश्लेषण में वन अधिकार एवं विरासत संरक्षण, जीएस 2 – सरकारी नीतियां एवं अंतक्षेप, जीएस 3 – संरक्षण शामिल हैं।

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मामला क्या है?

  • अनुसूचित जनजाति (एसटी) एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी जैसे अनुसूचित जाति (एससी), अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा कर्नाटक में सामान्य श्रेणी ने कहा कि वे उस प्रक्रिया से अवगत नहीं थे जो यूनेस्को विरासत स्थलों की घोषणा की ओर ले जाती है।
  • इससे पता चलता है कि विश्व विरासत स्थल की घोषणा अथवा इससे पूर्व, जब संरक्षित क्षेत्रों को अधिसूचित किया गया था, पारदर्शी रीति से नहीं हुआ था।

 

पीछे की कहानी

  • 2012 में यूनेस्को द्वारा पश्चिमी घाटों में जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण घोषित किए गए 39 क्षेत्रों में से 10 कर्नाटक में अवस्थित हैं।
  • क्षेत्रों को विश्व विरासत स्थलों के रूप में मान्यता प्रदान करने से पूर्व, यूनेस्को उनके जीवन एवं आजीविका पर संभावित घोषणा के निहितार्थ पर निवासियों की राय लेता है।
  • किंतु यह पाया गया है कि संभावित यूनेस्को विरासत स्थलों के समीप निवास करने वाले कर्नाटक के पारंपरिक वनवासी इसके बारे में अनभिज्ञ थे।
  • वन अधिकार अधिनियम (फॉरेस्ट राइट्स एक्ट/FRA) कहता है कि वनवासियों के दावे 4 हेक्टेयर की अनुमत सीमा से कम होने चाहिए।
  • अधिकांश वनवासियों ने एक एकड़ से अधिक भूमि का दावा नहीं किया।
  • अन्य पारंपरिक वनवासियों की अस्वीकृति दर अनुसूचित जनजातियों की तुलना में दो गुना अधिक थी।

 

लोगों द्वारा वन अधिकार अधिनियम (FRA) को अस्वीकार करने के क्या कारण हैं?

  • अनुसूचित जनजातियों के मामले में, कारण बताए गए थे
  • हाल के अतिक्रमण;
  • दावेदार, दावा की गई भूमि पर निवास नहीं करते हैं;
  • दावा की गई भूमि ‘पैसारी भूमि’ (बंजर भूमि एवं वन भूमि जिन्हें संरक्षित वन अथवा आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है) या राजस्व भूमि पर है; एवं
  • एक ही परिवार में कई आवेदन
  • अन्य पारंपरिक वनवासियों के मामले में मुख्य रूप से 75 वर्षों तक वन भूमि पर निर्भरता एवं निवास का साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफलता थी।
  • वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को उनके समग्र पिछड़ेपन के कारण मान्यता देता है। किंतु, अधिकांश व्यक्तियों ने महसूस किया कि इस अधिनियम को समाप्त कर देना चाहिए।

 

पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले लोगों को किस प्रकार के प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है?

  • पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (इको-सेंसिटिव जोन) के अंतर्गत आने वाले गांवों के लोगों को वनों में प्रवेश पर गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है।
  • ‘संरक्षित क्षेत्रों’ में नियमों के कठोर कार्यान्वयन के बाद वृक्षों की अवैध कटाई एवं अवैध शिकार में कमी आई है।
  • सामान्य रीति से खेती करने की अनुमति नहीं है, हल्की सी आवाज पर रोक लगा दी गई है, उर्वरकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है एवं यहां तक ​​कि एक छोटे से चाकू को भी जंगल में ले जाने की अनुमति नहीं है।
  • सड़क मरम्मत जैसे विकास कार्यों को रोक दिया गया है।
  • किंतु ये प्रतिबंध उस समय से प्रवर्तन में थे जब इन क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में घोषित किया गया था  तथा आवश्यक नहीं कि विश्व विरासत स्थलों के रूप में घोषित किए जाने के बाद।

 

इन प्रतिबंधों का प्रभाव

  • पशुओं के बढ़ते प्रकोप से खेती करने वाले वनवासियों की फसलों को हानि हो रही है।
  • जिन लोगों की अपनी जमीनों पर मान्यता नहीं है उन्हें हानि की क्षतिपूर्ति नहीं की जाती है।
  • शहरी परिवेश से वनों में मुक्त किए गए बंदर तथा सांप उनके घरों में प्रवेश कर जाते हैं।
  • वनों के निकट के गाँवों में पशुधन रखना नियमित राजस्व गाँवों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है।
  • जिन क्षेत्रों में सिंचाई परियोजनाएं प्रारंभ हुई हैं, वहां के लोगों ने बताया कि ऐसी परियोजनाओं के कारण समाप्त हुई वन भूमि की क्षतिपूर्ति हेतु सरकार द्वारा चरागाह भूमि पर कब्जा कर लिया गया है।

 

वर्तमान स्थिति क्या है?

  • अधिकांश वनवासी अभी भी विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के तहत प्रदान की जाने वाली मूलभूत सुविधाओं एवं अन्य सरकारी लाभों से वंचित थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास भूमि के स्वामित्व के साथ आवश्यक ‘अधिकार, किरायेदारी एवं फसल के अभिलेख’ नहीं है।
  • लोग अपनी संस्कृति एवं धार्मिक जड़ों के विलुप्त होने के भय से जमीन से लगाव के आधार पर पुनर्स्थापित होने से इनकार करते हैं।
  • ग्राम सभा अधिनियम में ‘प्रस्तावित पुनर्वास’ का निर्णय लेने में सर्वोच्च प्रतीत होती है क्योंकि इसे ‘मुक्त सूचित सहमति’ देनी होती है। हालांकि वास्तविक स्तर (धरातल) पर ऐसा होता नहीं है।

 

आगे की राह

  • जैव विविधता का संरक्षण करने वाले सरकारी अभिकरणों एवं दशकों तथा सदियों से  वनों में निवास करने वाले लोगों के मध्य संघर्ष से बचने के लिए सरकार को वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) में और अधिक स्पष्टता लानी चाहिए।
  • जैव विविधता के संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। फिर भी, वनों में निवास करने के इच्छुक वनवासियों को रहने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए।
  • उनमें से कई पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के मानदंडों का पालन करते हैं क्योंकि वे आधुनिक विकास की  आवश्यकताओं जैसे उर्वरकों एवं मोबाइल फोन के उपयोग पर निर्भर नहीं हैं।
  • साथ ही, जो लोग विकास के लाभों का अनुभव करना चाहते हैं, उन्हें उनकी पसंद के अनुसार एक नए स्थान तथा एक उपयुक्त पैकेज के अनुसार स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  • यह तभी संभव हो सकता है जब स्थानीय आबादी के साथ परामर्श के उपरांत ‘संरक्षित’ घोषित क्षेत्रों पर  सहमति स्थापित हो।

 

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