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सूचना का अधिकार अधिनियम- संस्थाओं एवं सूचना को आरटीआई से उन्मुक्ति तथा गैर-प्रकटीकरण विधानों के साथ संघर्ष

सूचना का अधिकार अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन के महत्वपूर्ण पहलू– नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही तथा संस्थागत एवं अन्य उपाय।

Indian Polity

 

सूचना का अधिकार अधिनियम

  • सूचना का अधिकार अधिनियम एक क्रांतिकारी अधिनियम है जिसका उद्देश्य भारत में सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं के निरंतर प्रयासों के पश्चात अस्तित्व में आया।
  • हम पहले ही निम्नलिखित प्रमुख अवधारणाओं पर चर्चा कर चुके हैं-
  • इस लेख में, हम आरटीआई अधिनियम से उन्मुक्ति प्राप्त सूचना एवं विभिन्न गैर-प्रकटीकरण विधानों के साथ इसकी दुविधाओं पर पर चर्चा करेंगे।

आरटीआई से उन्मुक्ति प्राप्त विभाग  एवं सूचना

  • उन्मुक्ति प्राप्त विभाग: बीस संगठनों को आरटीआई से उन्मुक्ति प्रदान की गई है।
    • ये सभी संस्थाएं, जैसे कि रॉ, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, इंटेलिजेंस ब्यूरो, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड इत्यादि देश की सुरक्षा एवं आसूचना से संबंधित हैं।
  • उन्मुक्ति प्राप्त सूचना: कुछ विशिष्ट उदाहरण हैं जिनमें आरटीआई सूचना प्रस्तुत नहीं की जा सकती है। उदाहरण के लिए, वैसी सूचना जो-
    • राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, सामरिक, आर्थिक एवं / या वैज्ञानिक हित को प्रभावित करेगा।
    • न्यायालय द्वारा जिन्हें प्रकट करने की अनुमति नहीं दी गई है।
    • व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा से संबंधित, ऐसी सूचना जो किसी तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को प्रभावित / हानि पहुंचा सकती है।
    • न्यासीय सम्बन्ध के अंतर्गत सूचना से संबंधित है।
    • विदेशी सरकार की सूचना से संबंधित है।
    • किसी व्यक्ति के जीवन / शारीरिक सुरक्षा को प्रभावित करेगी।
    • जांच की प्रक्रिया को प्रभावित करेगी।
    • कैबिनेट के दस्तावेज़ों से संबंधित है।
    • बिना किसी जनहित के व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है।
  • आरटीआई अधिनियम में यह भी कहा गया है कि ऐसी कोई भी सूचना जिसे किसी संसद सदस्य या राज्य विधानमंडल को उपलब्ध कराने से इनकार नहीं किया जा सकता है, किसी भी नागरिक को भी ऐसी सूचना के प्रकटीकरण से वंचित नहीं किया जा सकता है।

सूचना विधानों के गैर-प्रकटीकरण के साथ संघर्ष

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम: इसके कुछ प्रावधान (धारा 123, 124, एवं 162) संबंधित अधिकारियों को किसी भी सूचना का प्रकटीकरण नहीं करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
    • इन प्रावधानों के अंतर्गत, विभाग के प्रमुख राज्य के मामलों से संबंधित सूचना देने से इनकार कर सकते हैं एवं केवल यह शपथ लेते हुए कि यह एक राज्य का गोपनीय विषय है, सूचनाओं को प्रकट नहीं करने का अधिकार होगा।
    • इसी प्रकार किसी भी लोक अधिकारी को आधिकारिक विश्वास में उसे की गई संसूचनाओं का प्रकटीकरण करने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1912: यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित सूचना का प्रकटीकरण करना अपराध होगा।
  • केंद्रीय सिविल सेवा अधिनियम: यह एक सरकारी कर्मचारी को सरकार के सामान्य अथवा विशेष आदेश के अतिरिक्त किसी भी आधिकारिक दस्तावेज को संप्रेषित करने अथवा साझा नहीं करने का प्रावधान करता है।
  • आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923: यह प्रावधान करता है कि कोई भी सरकारी अधिकारी किसी दस्तावेज़ को गोपनीय के रूप में चिह्नित कर सकता है ताकि उसके प्रकाशन को रोका जा सके।

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