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भविष्य निधि पेंशन योजना को कारगर बनाने का समय- द हिंदू संपादकीय विश्लेषण

भविष्य निधि पेंशन योजना चर्चा में क्यों है?

  • हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सैद्धांतिक रूप से, लगभग 70 लाख पेंशनभोगियों के लिए उच्चतर पेंशन के विचार को अपनी स्वीकृति के रूप में दोहराया।
  • अतः, लगभग 70 लाख पेंशनभोगियों के लिए, कर्मचारी पेंशन योजना (एंप्लाइज पेंशन स्कीम/ईपीएस), 1995 के तहत उच्चतर पेंशन के लिए कष्टदायक प्रतीक्षा का अंत कहीं नहीं दिख रहा है, भले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस विचार को स्वीकृति प्रदान किए हुए दो माह से अधिक हो गया है।

उच्चतर भविष्य निधि पेंशन पर ईपीएफओ का मत

  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (एम्पलाइज प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन/ईपीएफओ) द्वारा दिसंबर के अंत में जारी एक सर्कुलर, जो कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के लिए प्रशासनिक निकाय है, ने केवल पेंशनरों के दर्द के बोध में वृद्धि की है।
  • हालांकि इसे न्यायालय के उस फैसले की अगली कड़ी माना जा रहा है, जहां ईपीएफओ को न्यायालय के अक्टूबर 2016 के निर्देशों को भी लागू करने के लिए कहा गया था, सर्कुलर केवल पेंशनभोगियों के एक वर्ग को कवर करता है – वह भी कुछ शर्तों के अधीन।

 

उच्चतर पेंशन मुद्दे की मांग का पता लगाना

  • यह सब 2005 की शुरुआत में प्रारंभ हुआ जब हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के कर्मचारियों के एक वर्ग ने अपनी सेवानिवृत्ति की पूर्व संध्या पर उच्चतर पेंशन की मांग की।
  • जैसा कि उनके नियोक्ता ने उनके वास्तविक वेतन पर 12% अनिवार्य अंशदान दिया था, जो वैधानिक सीमा से अधिक था, वे पेंशन निधि में अपने वास्तविक वेतन का 8.33% जमा करने के लाभ के हकदार होंगे।
  • किंतु ईपीएफओ प्रभावित नहीं हुआ क्योंकि कर्मचारियों ने अपने नियोक्ता के साथ कट-ऑफ तिथि के भीतर अपने विकल्प का उपयोग नहीं किया। अंततः मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया।
  • अक्टूबर 2016 में, शीर्ष न्यायालय ने ईपीएफओ की कट-ऑफ तिथि की धारणा को खारिज कर दिया एवं कहा कि कट-ऑफ तिथि, जैसा कि ईपीएस नियमों में है, केवल पेंशन योग्य वेतन की गणना करने के लिए थी।
  • एक अनुमान से ज्ञात होता है कि 24,672 पेंशनभोगियों को उच्चतर पेंशन का लाभ मिला।

 

उच्चतर पेंशन योजना पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार

  • संशोधित योजना को व्यापक रूप से बरकरार रखते हुए, न्यायालय ने नवंबर 2022 में विकल्प देने के लिए कट-ऑफ तिथि के सिद्धांत को खारिज कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने ईपीएफओ से उन लोगों को, विकल्प का प्रयोग करने के लिए चार माह का समय देने को कहा जो 1 सितंबर, 2014 को  इसके सदस्य थे।
  • साथ ही, सेवानिवृत्ति कोष निकाय को अक्टूबर 2016 के फैसले को आठ सप्ताह में लागू करना था। इसलिए ईपीएफओ का दिसंबर सर्कुलर आया।

 

ईपीएफओ परिपत्र एवं संबद्ध चिंताएं

  • ईपीएफओ के सर्कुलर के बारे में: ईपीएफओ का परिपत्र अथवा सर्कुलर, 2016 के फैसले का हवाला देते हुए, तीन शर्तों को लागू करने के साथ लाभार्थियों के कवरेज के दायरे को कम करने की मांग की गई है-
    • उच्चतर या वास्तविक मजदूरी पर अंशदान का भुगतान;
    • सेवा में रहते हुए संयुक्त विकल्प का प्रयोग, एवं
    • ईपीएफओ द्वारा उच्चतर पेंशन की अनुमति देने से इंकार करना।
  • चिंताएं: पेंशन भोगियों के एक वर्ग का तर्क है कि अधिकारियों ने सेवा में रहते हुए ऐसे व्यक्तियों को लगभग 12 वर्षों (दिसंबर 2004 से प्रारंभ) के लिए अपना विकल्प प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी, इस अवधि में विकल्प का उपयोग करने का प्रश्न ही नहीं उठता – जो इसलिए उन्हें इसके बाहर छोड़ दिया गया है।
    • इसके अतिरिक्त, 2014 के बाद के सेवानिवृत्त लोग – जो 1 सितंबर, 2014 के 58 वर्ष के हैं – अपनी दुर्दशा के बारे में अनभिज्ञ हैं।

 

ईपीएफओ सर्कुलर पर सरकार का तर्क

  • उच्चतर पेंशन की अनुमति देने के लिए भविष्य निधि (पीएफ) अधिकारियों की अनिच्छा के पीछे मुख्य कारण है-
    • पेंशन फंड की स्थिरता पर आशंका एवं
    • निम्न पेंशन प्राप्त करने वालों को उच्चतर पेंशन प्राप्त करने अथवा प्राप्त करने की संभावना वाले लोगों के लिए पेंशन भुगतान को क्रॉस-सब्सिडी देने का परिदृश्य।
  • इसके साथ-साथ बढ़ती बीमांकिक कमी, प्रति लाभ (रिटर्न) की निम्न दर एवं पेंशनभोगियों की बढ़ती लंबी  आयु जैसे कारकों के कारण पेंशन भुगतान की स्थिति प्राप्तियों से अधिक हो सकती है।
    • ईपीएफओ के अनुसार यह सामाजिक सुरक्षा के विरुद्ध होगा।

 

आगे की राह

  • स्पष्टता प्रदान करना: किंतु अधिकारियों को यह स्मरण रखना चाहिए कि पेंशनभोगियों के मध्य अत्यधिक भ्रम से बचा जा सकता था यदि वे जानकारी साझा करने या संबंधित लोगों को स्थिति समझाने में सक्रिय होते।
  • नवंबर के फैसले के बाद करीब दो माह तक ईपीएफओ कार्रवाई को लेकर मौन रहा।
  • वहीं, दिसंबर के सर्कुलर के बाद भी अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है।
  • नीतिगत मोर्चे पर, सरकार और ईपीएफओ को मौजूदा 1,000 रुपये के मुकाबले 3,000 रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन में वृद्धि करनी चाहिए।
  • पेंशन में बढ़ोतरी से काफी हद तक उन पेंशनभोगियों की शिकायतों का समाधान होगा जो निम्न वेतन वर्ग में थे।
  • इसके अतिरिक्त, ईपीएफओ उच्चतर वेतन समूह में उन सभी को एक बार अवसर प्रदान कर सकता है जो विकल्प का प्रयोग किए बिना दिसंबर 2004 में सेवानिवृत्त हुए।

 

निष्कर्ष

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता अथवा कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, 2020 के लागू होने पर उन युवाओं के लिए एक योजना हो सकती है, जिन्हें सितंबर 2014 के बाद नौकरी मिली है, जो अपने उच्चतर वेतन के कारण ईपीएस से बाहर हो गए हैं।
  • ये सभी उपाय केवल यह स्थापित करेंगे कि सरकार एवं ईपीएफओ सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रति गंभीर हैं।

 

भविष्य निधि पेंशन योजना एवं ईपीएफओ सर्कुलर के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्र. उच्चतर पेंशन निधि पर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) का हालिया परिपत्र क्या है?

उत्तर. ईपीएफओ का परिपत्र अथवा सर्कुलर, 2016 के फैसले का हवाला देते हुए, तीन शर्तों को लागू करने के साथ लाभार्थियों के कवरेज के दायरे को कम करने की मांग की गई है-

  • उच्चतर या वास्तविक मजदूरी पर अंशदान का भुगतान;
  • सेवा में रहते हुए संयुक्त विकल्प का प्रयोग, एवं
  • ईपीएफओ द्वारा उच्चतर पेंशन की अनुमति देने से इंकार करना।

प्र. ईपीएफओ खाते में कर्मचारियों द्वारा अनिवार्य अंशदान क्या है?

उत्तर. जैसा कि उनके नियोक्ता ने उनके वास्तविक वेतन पर 12% अनिवार्य अंशदान दिया था, जो वैधानिक सीमा से अधिक था, वे पेंशन निधि में अपने वास्तविक वेतन का 8.33% जमा करने के लाभ के हकदार होंगे।

 

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FAQs

What is the recent circular of EPFO on higher pension fund?

The EPFO circular, citing the 2016 ruling, has sought to narrow the scope of coverage of beneficiaries with the imposition of three conditions- Payment of contributions on higher or actual wages; Exercise of joint option while in service, and Refusal by the EPFO to allow higher pension.

What is the mandatory contributions by employees in EPFO account?

As their employer had made the 12% mandatory contributions on their actual pay, which exceeded the statutory ceiling, they would be entitled to the benefit of the deposit of 8.33% of their actual salary in the Pension Fund.

manish

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