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भारत में तंबाकू उत्पादन: प्रासंगिकता
- जीएस 3: देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल-फसल प्रतिरूप
भारत में तंबाकू की खेती: प्रसंग
- हाल ही में, आंध्र प्रदेश मार्कफेड ने अमेरिका को प्रायोगिक आधार पर 120 टन तंबाकू का निर्यात करके इतिहास रच दिया है, जो प्रथम बार किसी सरकारी एजेंसी द्वारा किया गया है।
आंध्र प्रदेश में तंबाकू की खेती: प्रमुख बिंदु
- आंध्र प्रदेश देश का एक प्रमुख तंबाकू उत्पादक राज्य है।
- तंबाकू बोर्ड देश में तंबाकू उत्पादन को विनियमित करता है एवं विगत वर्ष आंध्र प्रदेश के लिए फसल का आकार 130 mkg निर्धारित किया है।
तम्बाकू की खेती
- माना जाता है कि तम्बाकू (निकोटियाना टेबेकम) की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका से हुई है।
- वर्तमान वैश्विक उत्पादन 4.2 मिलियन हेक्टेयर से लगभग 3 मिलियन टन पत्तियों का है।
तम्बाकू के लिए जलवायु की दशाएं
- तम्बाकू को विभिन्न प्रकार की जलवायु में उत्पादित किया जाता है, किंतु रोपाई से लेकर पत्तियों की अंतिम कटाई तक 90 से 120 दिनों की तुषार हीन (ठंढ-मुक्त) अवधि की आवश्यकता होती है।
- वृद्धि के लिए इष्टतम औसत दैनिक तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होता है।
- पत्तियों के पकने एवं कटाई के लिए शुष्क अवधि की आवश्यकता होती है।
- अत्यधिक वर्षा के परिणामस्वरूप पतले, हल्के पत्ते बनते हैं।
- कुछ अल्पावधि की किस्मों को छोड़कर, खेती की गई तंबाकू फूलने की प्रतिक्रिया में दिन-तटस्थ होती है।
- फसल जलभराव के प्रति संवेदनशील है एवं सुवातित तथा जलोत्सारित मृदा की मांग करती है।
- इष्टतम पीएच 5 से 6.5 तक परिवर्तनशील होता है। मृदा की लवणता से पत्तियों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- अधिकतम उपज के लिए जल की आवश्यकता जलवायु एवं 400 से 600 मिमी तक वर्धन काल के साथ परिवर्तित होती रहती है।
भारत में तंबाकू की खेती
- भारत तंबाकू उत्पादन एवं निर्यात में विश्व में दूसरे स्थान पर है। चीन प्रथम स्थान पर है।
- तंबाकू प्रतिवर्ष 4,400 करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा एवं 13,000 करोड़ रुपये से अधिक उत्पाद शुल्क के रूप में अर्जित करता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इसका कुल योगदान 18,255 करोड़ रुपये है।
- भारत में, तंबाकू की फसल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन एवं निर्यात में संलग्न लगभग 36 मिलियन लोगों का समर्थन करती है, जिसमें छह मिलियन किसान तथा 5 मिलियन लोग बीड़ी-रोलिंग एवं तेंदूपत्ता तोड़ने में संलग्न हैं।
- इस प्रकार, फसल आबादी के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं, आदिवासियों एवं समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए एक जीवन रेखा का कार्य करती है।