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भारत में मृदा के प्रकार
भारत में मृदा के प्रकार: मृदा चट्टान के मलबे एवं कार्बनिक पदार्थों का मिश्रण है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। यद्यपि, संपूर्ण मृदा एक समान नहीं है एवं इसके घटकों में विभिन्नता पाई जाती है। पिछले लेख में, हमने जलोढ़ मृदा एवं काली मृदा पर चर्चा की थी। इस लेख में हम लाल मृदा, लैटेराइट मृदा और वन अथवा पर्वतीय मृदा पर चर्चा करेंगे।
लाल एवं पीली मृदा
- लाल मृदा भारत में जलोढ़ मृदा के पश्चात क्षेत्र के अनुसार दूसरी सर्वाधिक व्याप्त मृदा है।
- लाल मृदा रवेदार (क्रिस्टलीय) आग्नेय चट्टान जैसे अम्लीय ग्रेनाइट, नीस एवं क्वार्टजाइट से विकसित होती है।
लाल मृदा की विशेषताएं
- क्रिस्टलीय एवं कायांतरित चट्टानों में लोहे (फेरिक ऑक्साइड) के व्यापक प्रसार के कारण मृदा का रंग लाल हो जाता है। जलयोजित (हाइड्रेटेड) रूप में होने पर यह पीला दिखता है।
- मृदा की प्रकृति (बनावट) रेतीली से मृण्मय एवं दोमट मृदा में भिन्नता लिए होती है।
- सूक्ष्म-कणीय लाल एवं पीली मृदा सामान्य रूप से उपजाऊ होती है, जबकि शुष्क उच्च भूमियों (ऊपरी क्षेत्रों) में पाई जाने वाली बारीक- कणीय मृदा उर्वरता में निम्न कोटि की होती है।
लाल मृदा की रासायनिक संरचना
- लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण वे आम तौर पर अम्लीय प्रकृति के होते हैं।
- वे आम तौर पर नाइट्रोजन, मैग्नीशियम, फास्फोरस तथा ह्यूमस में खराब होते हैं।
- वे पोटेशियम में अत्यधिक समृद्ध हैं।
लाल मृदा का वितरण
- ये मृदा अधिकांशतः दक्कन के पठार के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
- ये मृदा लगभग संपूर्ण तमिलनाडु में विस्तृत है।
- पीली एवं लाल मृदा ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों एवं मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी हिस्सों में भी पाई जाती है।
- पश्चिमी घाट के पीडमोंट क्षेत्र के किनारे, क्षेत्र के एक लंबे खंड पर लाल दोमट मृदा का विस्तार है।
लाल मृदा में फसलें
- एक बार सिंचित और ह्यूमस के साथ योजित होने के पश्चात, समृद्ध खनिज आधार के कारण लाल मृदा उच्च उपज देती है।
- लाल मृदा भी चावल, गन्ना, कपास की खेती का समर्थन करती है
- शुष्क क्षेत्रों में बाजरा एवं दालें उत्पादित की जाती हैं।
लैटेराइट मृदा
- लैटेराइट लैटिन शब्द ‘लेटर’ से लिया गया है जिसका अर्थ ईंट होता है।
- इस प्रकार की मृदा अधिकांशतः अपक्षय के अंतिम उत्पाद हैं।
- लैटेराइट मृदा उच्च तापमान तथा उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
- ये उष्णकटिबंधीय वर्षा के कारण तीव्र निक्षालन का परिणाम हैं।
- गृह निर्माण में उपयोग के लिए लैटेराइट मृदा को ईंटों के रूप में व्यापक रूप से काटा जाता है।
लैटेराइट मृदा की विशेषताएं
- वर्षा के कारण चूना एवं सिलिका निक्षालित हो जाता है एवं लौह ऑक्साइड तथा एल्यूमीनियम यौगिकों से समृद्ध मृदा शेष रह जाती है।
- उच्च तापमान में अच्छी तरह से पनपने वाले जीवाणुओं द्वारा मृदा की ह्यूमस सामग्री को तेजी से हटा दिया जाता है।
- लैटेराइट मृदा में कार्बनिक पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट एवं कैल्शियम का अभाव होता है, जबकि आयरन ऑक्साइड और पोटाश की अधिकता होती है।
- इसलिए, लैटेराइट मृदा कृषि कार्य हेतु उपयुक्त नहीं हैं; यद्यपि, कृषि के लिए मृदा को उपजाऊ बनाने के लिए खाद और उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता होती है।
लैटेराइट मृदा का वितरण
- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं केरल में लाल लैटेराइट मृदा काजू जैसी वृक्ष फसलों के लिए अधिक उपयुक्त है।
- लैटेराइट मृदा आमतौर पर कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
लैटेराइट मृदा में फसलें
- निक्षालन (लीचिंग) के कारण लैटेराइट मृदा में उर्वरता का अभाव होता है।
- यद्यपि, उर्वरकों एवं सिंचाई के साथ, कुछ लैटेराइट मिट्टियां चाय, कॉफी, रबर, नारियल, सुपारी इत्यादि जैसे बागानी फसलों के उत्पादन हेतु उपयुक्त हैं।
पर्वतीय या वन मृदा
- वन क्षेत्र की मृदा का निर्माण उन वन क्षेत्रों में होता है जहाँ पर्याप्त वर्षा होती है।
- वे मुख्य रूप से विषमांगी मृदा हैं जो वनों से आवरित पहाड़ी ढलानों पर पाई जाती हैं।
- पर्वतों के वातावरण के आधार पर मृदा की संरचना एवं बनावट में भिन्नता होती है जहाँ वे निर्मित होते हैं।
- इस कारण से, वे एक दूसरे के निकट होने पर भी अत्यधिक भिन्न होते हैं।
- वे घाटी के किनारों पर दोमट तथा गादयुक्त होते हैं एवं ऊपरी ढलानों में बारीक दानेदार होते हैं।
- हिमालय के बर्फीले क्षेत्रों में, वे अनाच्छादन का अनुभव करते हैं एवं कम ह्यूमस सामग्री के साथ अम्लीय प्रकृति के होते हैं। निचली घाटियों में पाई जाने वाली मृदा उपजाऊ होती है।
वन मृदा की रासायनिक संरचना
- कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति के कारण वन अथवा पर्वतीय मृदा ह्यूमस में अत्यधिक समृद्ध होती है।
- इनमें पोटाश, फास्फोरस और चूने का अभाव होता है।
पर्वतीय मृदा में फसलें
- प्रायद्वीपीय वन क्षेत्र में चाय, कॉफी, मसालों और उष्णकटिबंधीय फलों के रोपण के लिए पर्वतीय मृदा उपयुक्त है।
- हिमालयी वन क्षेत्र में गेहूं, मक्का, जौ तथा शीतोष्ण फल उत्पादित किए जाते हैं।