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तालिबान शासन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट: अल-कायदा का  फोकस अब भारत पर

तालिबान पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यूपीएससी: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: भारत के हितों, भारतीय प्रवासियों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।

अफगानिस्तान में तालिबान शासन: संदर्भ

  • हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल/यूएनएससी) ने एकनवीन रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि नए तालिबान शासन के तहत विदेशी आतंकवादी संगठन सुरक्षित पनाहगाह का उपयोग कर रहे हैं

 

तालिबान पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट अफगानिस्तान: प्रमुख निष्कर्ष

  • आतंकवादी हमले: रिपोर्ट में पाया गया है कि वित्तीय बाधाओं के कारण एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान को परेशानी में ना डालने के राजनीतिक दबाव के कारण, आतंकवादी समूहों द्वारा 2023 से पहले अफगानिस्तान के बाहर बड़े हमले प्रारंभ करने की संभावना नहीं है।
  • तालिबान में तीन वर्ग: तालिबान में तीन वर्ग – मॉडरेट, हार्डलाइन एवं हक्कानी नेटवर्क हैं।
    • नरमपंथी (मॉडरेट) विदेशी भागीदारों के साथ कामकाजी संबंध तथा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के साथ एकीकरण चाहते हैं।
    • हार्डलाइन अधिक वैचारिक अवस्थिति चाहते हैं, वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुत कम रुचि रखते हैं।
    • हक्कानी, कट्टरपंथियों के साथ अधिक गठबंधन होने के बावजूद, तालिबान के हितों को प्राप्त करने हेतु वैचारिक दृष्टिकोण के स्थान पर एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की ओर अधिक प्रवृत्त हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हक्कानी नेटवर्क प्रशासन के अधिकांश प्रभावशाली पदों पर नियंत्रण स्थापित कर रहा है।
  • जातीय गतिशीलता: रिपोर्ट का मानना ​​​​है कि कंधारी (दुर्रानी) तालिबान, तालिबान नेतृत्व के मध्य प्रभुता की स्थिति में है, पश्तूनों को गैर-पश्तूनों पर प्राथमिकता मिल रही है।
  • सामान्य लक्ष्य में समस्या: तालिबान के भीतर आंतरिक सामंजस्य विद्रोह की अवधि के दौरान बनाए रखना आसान था, जब अफगानिस्तान से विदेशी शक्तियों को खदेड़ने के लिए एक ठोस सामान्य कारण था।

 

भारत के लिए आतंकवादी खतरा

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत-केंद्रित दो आतंकवादी समूहों, जैश-ए-मोहम्मद (JiM) एवं लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के अफगानिस्तान में प्रशिक्षण शिविर होने की सूचना है।
    • दोनों समूहों का तालिबान नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है, लश्कर के पास तालिबान संचालन के लिए वित्त तथा प्रशिक्षण विशेषज्ञता प्रदान करने का इतिहास है।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप (AQIS) में अल-कायदा के अफगानिस्तान में बांग्लादेश, भारत, म्यांमार तथा पाकिस्तान के 180-400 लड़ाके मौजूद हैं।
  • वर्तमान में, वित्तीय बाधाओं के कारण आतंकवादी संगठन को “कम आक्रामक मुद्रा” अपनाने के लिए बाध्य किया गया है।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि AQIS पत्रिका का नाम ‘नवा-ए-अफगान जिहाद’ से बदलकर ‘नवा-ए-गज़वा-ए-हिंद’ करनाअफगानिस्तान से कश्मीर में AQIS के पुन: ध्यान केंद्रित करने का सुझाव देता है।

अफगानिस्तान में आतंकवादी समूह

  • तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफगानिस्तान में विदेशी आतंकवादी लड़ाकों का सबसे बड़ा घटक है। वे अधिकांशतः पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों के समीप स्थित हैं।
  • अफगानिस्तान के समस्त विदेशी चरमपंथी समूहों में तालिबान के अधीनीकरण से टीटीपी को सर्वाधिक लाभ प्राप्त हुआ है।
  • रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि 26 अगस्त के काबुल हवाईअड्डे पर हुए हमले ने इराक में इस्लामिक स्टेट  तथा लेवंत-खोरासन (आईएसआईएल-के) को इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रमुख दा-एश सहयोगी बना दिया है।
  • जबकि 2021 के अंत में टीटीपी की गतिविधि में कमी आई, जेलों से रिहा होने एवं नई भर्तियों के माध्यम से समूह की ताकत में वृद्धि हुई है।
  • इस बीच, अल-कायदा के तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध बने हुए हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि न तो आईएसआईएल-के तथा न ही अल-कायदा को 2023 से पूर्व शीघ्र से शीघ्र अंतरराष्ट्रीय हमले करने में सक्षम माना जाता है।
  • रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि अफगानिस्तान की भूमि पर अन्य आतंकवादी समूहों की उपस्थिति के साथ-साथ उनकी उपस्थिति पड़ोसी देशों एवं व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।

 

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