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भारत में असंगठित क्षेत्र

असंगठित क्षेत्र यूपीएससी

  • असंगठित क्षेत्र में उद्यम के लिए राष्ट्रीय आयोग (नेशनल कमीशन फॉर एंटरप्राइजेज इन द ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर/एनसीईयूएस) के अनुसार, असंगठित क्षेत्र में 10 से कम श्रमिकों वाली सभी अनिगमित निजी संस्थाएं  सम्मिलित हैं जो वस्तु तथा सेवाओं के विक्रय अथवा उत्पादन में संलग्न हैं।
  • भारत में, लगभग 80% श्रम शक्ति अनौपचारिक/असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है तथा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 50% इस क्षेत्र द्वारा योगदान दिया जाता है।

असंगठित क्षेत्र की विशेषताएं

  • निम्न संगठनात्मक स्तर: आकार में छोटा, आमतौर पर 10 से कम कर्मचारी एवं अधिकांशतः परिवार के निकटतम सदस्यों से।
  • कार्यों में विषमता;
  • औपचारिक क्षेत्र की तुलना में प्रवेश तथा निकास सरल;
  • सीमित पूंजी निवेश;
  • प्रायः श्रम-गहन रोजगार, निम्न स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है; जैसा कि कार्यकर्ता कार्य के दौरान सीखते हैं, आमतौर पर कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होता है;
  • औपचारिक अनुबंधों के विपरीत श्रम समझौते आकस्मिक कार्य एवं/या सामाजिक संबंधों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं; कभी-कभी, नियोक्ता एवं कर्मचारी के मध्य संबंध अलिखित तथा अनौपचारिक होते हैं जिनमें बहुत कम या कोई अधिकार नहीं होते हैं।

 

असंगठित क्षेत्र के मुद्दे

  • अपर्याप्त सुरक्षा एवं स्वास्थ्य मानक: अधिकांश उद्योगों, विशेष रूप से खनन में, अपर्याप्त सुरक्षा तथा स्वास्थ्य मानक  देखे जाते हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में पर्यावरणीय खतरे सामान्य हैं।
  • न्यूनतम मजदूरी में अनियमितताएं: श्रमिकों के वेतन स्तर तथा आय की जांच करने वाले अधिकांश अध्ययनों ने यह अभिनिर्धारित किया है कि दैनिक मजदूरी मजदूरी की न्यूनतम दर से कम है।
  • कार्य के दीर्घ घंटे: असंगठित क्षेत्र में लंबे समय तक कार्य करना भारत में आम है, जो श्रम एवं नियामक मानदंडों से परे है।
  • निर्धनता एवं ऋणग्रस्तता: असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में संगठित क्षेत्र में उनके समकक्षों की तुलना में अत्यधिक निर्धनता पाई जाती है।
  • सामाजिक सुरक्षा उपायों की अनुप्रयोज्यता: ऐसे समय होते हैं जब एक कर्मकार आर्थिक रूप से सक्रिय नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, रोग अथवा वृद्धावस्था इत्यादि के कारण। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को जोखिम कवरेज प्रदान करने एवं बेरोजगारी या स्वास्थ्य के मुद्दों जैसे संकट के समय मूलभूत जीवन स्तर के अनुरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु शायद ही कोई सामाजिक सुरक्षा उपाय हैं।
  • उचित भौतिक वातावरण का अभाव: स्वच्छता सुविधाओं का अभाव श्रमिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। काम पर धुलाई, मूत्रालय तथा शौचालय जैसी सुविधाएं निम्न स्तर की पाई गई हैं।

 

भारत में असंगठित क्षेत्र: सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • असंगठित क्षेत्र में उद्यम के लिए राष्ट्रीय आयोग: भारत अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं एवं चुनौतियों का अध्ययन करने के लिए 2004 में असंगठित क्षेत्र में उद्यम के लिए राष्ट्रीय आयोग ( नेशनल कमीशन फॉर एंटरप्राइजेज इन द अन-ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर/एनसीईयूएस) नामक एक आयोग की स्थापना करने वाले अग्रणी देशों में से एक है।
  • निर्धनता से संबंधित विकास योजनाएं: नेहरू रोजगार योजना, मनरेगा एवं स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना जैसी निर्धनता उन्मूलन के लिए अनेक योजनाएं प्रारंभ की गई हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के लिए, संसद ने असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 अधिनियमित किया। अटल पेंशन योजना, प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना, पीएम- श्रम योगी मान-धन योजना, पीएम-स्वनिधि योजना जैसी योजनाओं का भी विमोचन किया गया।
  • कौशल विकास: कौशल संवर्धन हेतु, सरकार ने कौशल भारत मिशन, प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, पूर्व शिक्षा की मान्यता इत्यादि जैसे विभिन्न कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।
  • बीमा योजना: प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना (पीएमजेजेबीवाई) एवं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के माध्यम से जीवन एवं विकलांगता कवर प्रदान किया जाता है।
  • अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना: जीएसटी, डिजिटलीकरण जैसे कदम अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने की दिशा में कदम हैं।

असंगठित क्षेत्र: आवश्यक कदम

  • श्रम कानूनों में बदलाव: श्रम कानून, साथ ही कर नीतियां, कारोबारी माहौल में सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं। श्रम नियमों को अधिक लचीली कार्य व्यवस्था के लिए अनुमति प्रदान करनी होगी।
  • व्यावसायिक खतरों को रोकना: कार्यस्थल स्तर पर लागत प्रभावी तथा  धारणीय उपायों के माध्यम से नीतियां  निर्मित कर व्यावसायिक दुर्घटनाओं तथा रोगों को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
  • स्थानीय समर्थन: सामाजिक सुरक्षा को उत्तरोत्तर विस्तारित करने हेतु स्थानीय संस्थागत समर्थन का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • संवेदीकरण: नीति निर्माताओं, नगरपालिका अधिकारियों एवं श्रम निरीक्षण सेवाओं के संवेदीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि एक निवारक  एवं प्रचार दृष्टिकोण के प्रति उनकी पारंपरिक भूमिका को परिवर्तित किया जा सके।
  • स्वास्थ्य सुरक्षा: अनौपचारिक क्षेत्र में कामगारों के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य देखभाल के विस्तार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही कार्य स्थल के स्तर पर प्राथमिक उपचार एवं रोकथाम के मध्य एक कड़ी स्थापित की जानी चाहिए।

 

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