भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर

भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर- ​​यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं मूलभूत संरचना

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भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर: प्रसंग

  • किसी विधेयक को स्वीकृत करने से इंकार करने एवं इस प्रकार उसके विधि के रूप में में अधिनियमित होने से निवारित करने की राष्ट्रपति की शक्ति भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति है।

भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर- ​​प्रमुख बिंदु

  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान का अनुच्छेद 111 विभिन्न स्थितियों में राष्ट्रपति के वीटो शक्ति के उपयोग के लिए दिशा निर्देश प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 111 कहता है कि “जब कोई विधेयक संसद के सदनों द्वारा पारित किया जाता है, तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, और राष्ट्रपति-
    • विधेयक पर अपनी सहमति प्रदान करेंगे अथवा
    • अपनी सहमति विधारित करते हैं अथवा
    • विधेयक (धन विधेयक को छोड़कर) को, विधेयक पर पुनर्विचार के संदेश के साथ संसद को वापस लौटा देते हैं।

वीटो शक्तियों के प्रकार

  • वीटो की शक्ति मूल रूप से विधायिका के किसी भी अधिनियम को अध्यारोपित (ओवरराइड) करने के लिए कार्यपालिका (राष्ट्रपति के माध्यम से) की शक्ति है। वीटो शक्तियों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
  1. आत्यंतिक/पूर्ण वीटो: राष्ट्रपति विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर सहमति रोक सकते हैं।
  2. सीमित वीटो: राष्ट्रपति सहमति को रोक सकते हैं किंतु इसे विधायिका द्वारा उच्च बहुमत के द्वारा अध्यारोपित किया जा सकता है।
  3. निलंबन वीटो: इसमें विधायिका द्वारा राष्ट्रपति की सहमति को साधारण बहुमत के द्वारा अध्यारोपित किया जा सकता है।
  4. पॉकेट वीटो: यह तब लागू होता है जब राष्ट्रपति विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्णय करते हैं।
  • भारत के राष्ट्रपति हेतु उपलब्ध वीटो शक्तियां: भारत के राष्ट्रपति के पास निलंबन वीटो, पॉकेट वीटो एवं आत्यंतिक वीटो है किंतु उनके पास सीमित वीटो (संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के विपरीत) नहीं है ।

भारत के राष्ट्रपति का वीटो पावर- ​​कुछ उदाहरण

  • राष्ट्रपति का आत्यंतिक वीटो: जब राष्ट्रपति द्वारा इस वीटो शक्ति का उपयोग किया जाता है तो इसका तात्पर्य है कि संसद द्वारा पारित विधेयक विधि नहीं बनेगा। सीधे शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति का आत्यंतिक / पूर्ण वीटो कानून बनने से पूर्व ही किसी विधेयक को समाप्त कर देता है।
    • टिप्पणी: राष्ट्रपति स्वविवेक के आधार पर आत्यंतिक वीटो शक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद (सीओएम) द्वारा प्रदान किए गए परामर्श के आधार पर कार्य करेंगे।
    • उदाहरण- 1954 में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रपति के रूप में आत्यंतिक वीटो का प्रयोग किया गया था, जब उन्होंने पेप्सू विनियोग विधेयक के लिए सहमति को रोक दिया था।
      • कारण यह था कि पेप्सू राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद द्वारा विधेयक पारित किया गया था।
      • यद्यपि, राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने के समय तक, इसे निरस्त कर दिया गया था।
    • निलम्बित वीटो: भारत के राष्ट्रपति विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को वापस करके निलम्बित वीटो का प्रयोग करते हैं।
      • जब संसद किसी संशोधन के साथ या बिना किसी संशोधन के विधेयक को पुनः राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति अपनी किसी भी वीटो शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
      • इसका तात्पर्य है कि राष्ट्रपति के निलंबित वीटो को संसद द्वारा विधेयक को पुनः पारित किए जाने से अधिरोहित किया जा सकता है।
    • पॉकेट वीटो: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 111 राष्ट्रपति के लिए संसद द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सहमति प्रदान करने हेतु कोई समय सीमा निर्धारित नहीं करता है।
      • इस परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार का उपयोग करते हुए, राष्ट्रपति किसी विधेयक पर कार्रवाई को अनिश्चित काल के लिए व्यावहारिक रूप से स्थगित कर सकते हैं, एवं उसे संसद में वापस नहीं कर सकते हैं। यह राष्ट्रपति का पॉकेट वीटो है।
      • उदाहरण- भारतीय राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के लिए पॉकेट वीटो का प्रयोग किया था।
        • कारण यह था कि प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए विधेयक को आलोचना का सामना करना पड़ रहा था।
        • अंत में, जब संसद ने इसे आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय किया तो बिल स्वतः समाप्त हो गया
  • कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
    • धन विधेयक एवं संसद के संविधान संशोधन विधेयक के विरुद्ध राष्ट्रपति के वीटो अधिकार उपलब्ध नहीं हैं।
    • राष्ट्रपति का पॉकेट वीटो की शक्ति उनकी परिस्थितिजन्य विवेकाधीन शक्ति है एवं संविधान में इसका उल्लेख नहीं किया गया है (यह एक संवैधानिक विवेकाधिकार नहीं है)।

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