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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 1972 चर्चा में क्यों है?
- वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट/डब्ल्यूएलपीए), 1972 में महत्वपूर्ण संशोधन करते हुए राज्यसभा द्वारा 8 दिसंबर, 2022 को संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 1972 में सर्वाधिक महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक धारा 43 में, हाथियों, अनुसूची I में सम्मिलित पशु के ‘धार्मिक अथवा किसी अन्य उद्देश्य‘ के लिए उपयोग किए जाने की अनुमति प्रदान कर किया गया है।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक की पृष्ठभूमि
कानून के तहत संरक्षित प्रजातियों के संवर्धन हेतु वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करने वाला विधेयक 2 अगस्त, 2022 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक के क्या उद्देश्य हैं?
- वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक का उद्देश्य उन प्रजातियों के संरक्षण को संवर्धित करना जो विधि द्वारा संरक्षित हैं।
- यह अधिनियम में वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के प्रावधानों को लागू करके ऐसा करने की योजना बना रहा है।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक सीआईटीईएस के तहत दायित्व कैसे पूरा करता है?
सीआईटीईएस क्या है?
सीआईटीईएस सरकारों के मध्य यह सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है कि वन्य पशुओं तथा पौधों के नमूनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालता है।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक सीआईटीईएस के तहत दायित्व कैसे पूरा करता है?
- भारत में अवैध पशु व्यापार को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962; विदेश व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992; एक्ज़िम नीति एवं वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत विनियमित किया जाता है।
- यद्यपि, वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक लाया गया क्योंकि CITES को वन्यजीव संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र ढांचे की आवश्यकता है।
- एक नई अनुसूची का प्रवेश: विधेयक द्वारा प्रस्तुत किए गए एक प्रमुख संशोधन में सीआईटीईएस परिशिष्ट के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिए एक नवीन अनुसूची की प्रविष्टि के साथ-साथ धारा 6 में राज्य वन्यजीव बोर्डों द्वारा प्रत्यायोजित शक्तियों एवं कर्तव्यों का प्रयोग करने के लिए एक स्थायी समिति का गठन शामिल है।
- एक प्रबंधन प्राधिकरण की नियुक्ति: एक प्रस्तावित नई धारा 49 ई केंद्र सरकार द्वारा एक प्रबंधन प्राधिकरण की नियुक्ति हेतु प्रावधान करता है। प्राधिकरण सीआईटीईएस के अनुसार अनुसूचित नमूनों में व्यापार के लिए परमिट तथा प्रमाण पत्र जारी करने एवं रिपोर्ट जमा करने हेतु उत्तरदायी होगा। यह अभिसमय (कन्वेंशन) के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक अन्य कार्य भी संपादित करेगा।
- एक अन्य धारा 49 एफ केंद्र को एक वैज्ञानिक प्राधिकरण के रूप में प्रजातियों पर अनुसंधान में संलग्न एक या एक से अधिक संस्थानों को प्रबंधन प्राधिकरण को परामर्श देने एवं अनुसूची IV के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध प्रजातियों के नमूनों के लिए दिए गए निर्यात परमिट की निगरानी एवं ऐसे नमूनों के वास्तविक निर्यात के लिए नामित करने का अधिकार देगी।
नवीनतम संशोधन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 को कैसे नया रूप प्रदान करता है?
CITES के प्रावधानों को लागू करता है
CITES के तहत परिशिष्ट में सूचीबद्ध नमूनों के लिए एक नई अनुसूची समाविष्ट की गई है।
केंद्र सरकार को बहुत अधिक शक्तियां प्रदान करता है
- केंद्र सरकार एक प्रबंधन प्राधिकरण नियुक्त कर सकती है, जो नमूनों के व्यापार के लिए निर्यात अथवा आयात परमिट प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार, अधिकार अथवा प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित कर सकती है (पौधे या पशु प्रजातियां जो भारत के लिए स्थानिक नहीं हैं एवं जिनका परिचय वन्य जीवन अथवा इसके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है)।
- केंद्र सरकार एक संरक्षण निचय को भी अधिसूचित कर सकती है (आमतौर पर स्थापित राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभ्यारण्यों के बीच बफर जोन या अनुयोजक एवं अभिगमन गलियारा (माइग्रेशन कॉरिडोर) के रूप में कार्य करती है)।
अनुसूचियों की संख्या को छह से घटाकर चार कर देता है
- नवीन 4 अनुसूचियां कौन सी होंगी?
- अनुसूची I: पशु प्रजातियां जो उच्चतम स्तर की सुरक्षा का उपभोग करेंगी
- अनुसूची II: पशु प्रजातियां जो कुछ सीमा तक संरक्षण के अधीन होंगी
- अनुसूची III: संरक्षित पौधों की प्रजातियाँ
- अनुसूची IV: सीआईटीईएस (अनुसूचित नमूने) के तहत परिशिष्ट में सूचीबद्ध नमूने
- अनुसूचित पशुओं के जीवित नमूने रखने वाले लोगों को प्रबंधन प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।
- विधेयक किसी भी व्यक्ति को स्वेच्छा से, बिना किसी क्षतिपूर्ति एवं पशु पर परिणामी अधिकार के किसी भी बंदी पशु के अभ्यर्पण करने के संबंध में प्रावधान करता है।
- विधेयक जीवित हाथियों के वाणिज्यिक व्यापार की अनुमति प्रदान करता है। अतः यह विधेयक हाथियों के व्यावसायिक व्यापार की अनुमति देता है। यह पिछले अधिनियम (वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972) के विपरीत है, जो विशेष रूप से बंदी एवं जंगली हाथियों सहित वन्य पशुओं के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभ्यारण्यों के लिए (जहां वन अधिकार अधिनियम -एफआरए 2006 लागू है एवं 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है), संबंधित ग्राम सभा के परामर्श के पश्चात प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिए।
- वनस्पतियों एवं जीवों और उनके पर्यावास की रक्षा के लिए राज्य राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों से सटे क्षेत्रों को संरक्षण निचय के रूप में घोषित कर सकते हैं।
- बिल दंड में वृद्धि करता है – सामान्य उल्लंघन के लिए (25,000 रुपये से बढ़ाकर 1,00,000 रुपये तक कर दिया गया है) एवं विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिए (10,000 रुपये से बड़ाकर 25,000 रुपये तक कर दिया गया है)।
प्रमुख आलोचनाएं
- अनेक वन्यजीव एवं कानूनी विशेषज्ञों की राय है कि विधेयक के प्रावधान वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के उद्देश्यों के प्रतिकूल थे।
- कई लोगों का कहना है कि इस विधेयक में हाथियों के व्यावसायिक व्यापार, उनकी कैद एवं क्रूरता को प्रोत्साहित करने की क्षमता है। उनका कहना है कि हाथियों, अनुसूची I के पशुओं को ‘धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य’ के लिए उपयोग करने की अनुमति प्रदान कर धारा 43 में संशोधन मुख्य अधिनियम के प्रत्यक्ष उल्लंघन में है, जो प्रतिफल के लिए वन्यजीवों के परिवहन पर रोक लगाता है।
- अनेक व्यक्तियों का कहना है कि सरकार ने मानव-वन्यजीव संघर्ष, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र नियम इत्यादि से संबंधित मुद्दों को हल करने का अवसर गंवा दिया। उन्होंने बताया कि संसदीय स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार विधेयक की सभी 3 अनुसूचियों में सूचीबद्ध प्रजातियां अधूरी हैं।
- संघवाद के सिद्धांतों का पालन नहीं करता: अनेक व्यक्ति यह कहते हैं कि अधिकतम 10 नामित सदस्यों एवं प्रबंधन तथा वैज्ञानिक प्राधिकरणों के साथ वन एवं पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता वाली वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की स्थापना से राज्य की भागीदारी कम हो जाती है एवं भारत के संघीय ढांचे को हानि पहुंचती है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 1972 में नवीनतम संशोधन के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र. सीआईटीईएस क्या है?
उत्तर. सीआईटीईएस सरकारों के मध्य यह सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है कि वन्य पशुओं तथा पौधों के नमूनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालता है।
प्र. भारत में अवैध पशु व्यापार को किन अधिनियमों के तहत विनियमित किया जाता है?
उत्तर. भारत में अवैध पशु व्यापार को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962; विदेश व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992; एक्ज़िम नीति एवं वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत विनियमित किया जाता है।
प्र. हाथियों के संबंध में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में नवीनतम संशोधन क्या है?
उत्तर. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 1972 में सर्वाधिक महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक धारा 43 में, हाथियों, अनुसूची I में सम्मिलित पशु के ‘धार्मिक अथवा किसी अन्य उद्देश्य‘ के लिए उपयोग किए जाने की अनुमति प्रदान कर किया गया है।