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केरल विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका चर्चा में क्यों समाप्त कर रहा है?
केरल विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका समाप्त कर रहा है:
- अधिकांश मामलों में, राज्य के राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं। जबकि राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता एवं परामर्श से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है एवं विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर अपने विवेक से निर्णय लेता है।
- किंतु, केरल राज्य सरकार ने हाल ही में राज्य विश्वविद्यालयों के प्रशासन से संबंधित कानूनों में संशोधन करने एवं राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में हटाने के लिए केरल राज्य विधानसभा में दो विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक पारित किए हैं।
क्या प्रस्तावित संशोधन से विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्यपाल की प्रहरी की भूमिका समाप्त हो जाएगी?
- प्रस्तावित विधान (विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक) केरल में विधायी अधिनियमों द्वारा स्थापित 14 विश्वविद्यालयों की विधियों में संशोधन करेगा एवं राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटा देगा।
- नवीनतम विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक सरकार को प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के रूप में नियुक्त करने की शक्ति प्रदान करेंगे, इस प्रकार विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्यपाल की निगरानी की भूमिका समाप्त हो जाएगी।
- विधेयकों में नियुक्त किए गए कुलाधिपतियों के कार्यकाल को पांच वर्ष तक सीमित करने का भी प्रावधान है।
केरल सरकार विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्यपाल की निगरानी की भूमिका क्यों समाप्त कर रही है?
पृष्ठभूमि
- श्री आरिफ मोहम्मद खान (केरल के वर्तमान राज्यपाल) एवं राज्य सरकार के बीच महीनों से टकराव चल रहा है।
- यह मामला तब चरम पर पहुंच गया जब राज्यपाल ने कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गोपीनाथ रवींद्रन पर 2019 भारतीय इतिहास कांग्रेस में अपने जीवन को खतरे में डालने की साजिश रचने का आरोप लगाया।
- यह तब और भी बदतर हो गया जब राज्यपाल ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विवादास्पद लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक एवं विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।
- राज्यपाल एवं सरकार के मध्य इस गतिरोध के परिणामस्वरूप श्री खान ने दावा किया कि उनके (गवर्नर के) पास उन मंत्रियों को पदच्युत करने की शक्ति है जो उनकी आलोचना करते हैं। श्री खान ने सुझाव दिया कि मुख्यमंत्री को वित्त मंत्री के.एन. बाल गोपाल के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि वित्त मंत्री को राज्यपाल का प्रसाद पर्यंत समाप्त हो गया था।
- केरल टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति की नियुक्ति को अमान्य करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के साथ राज्य एवं श्री खान के बीच बिगड़ते संबंध एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गए।
- इस फैसले के बाद, राज्यपाल ने 11 अन्य कुलपतियों के त्यागपत्र की मांग करते हुए दावा किया कि उन्हें उसी प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त किया गया था जिसे शीर्ष न्यायालय ने अमान्य कर दिया था।
केरल राज्य सरकार किस आधार पर राज्यपाल की भूमिका समाप्त कर रही है?
- केरल में वामपंथी सरकार इस बात का समर्थन कर रही है कि संविधान में राज्यपाल के कुलाधिपति की भूमिका की परिकल्पना नहीं की गई है जबकि यह कहा गया है कि राज्य विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति की भूमिका राज्य विधान सभा द्वारा सौंपी गई थी।
- राज्य सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग की सिफारिश का भी दावा किया है कि “राज्यपाल पर उन पदों एवं शक्तियों का बोझ डालने से बचना चाहिए जो संविधान द्वारा परिकल्पित नहीं हैं एवं जो राज्यपाल के पद को विवादों या सार्वजनिक आलोचना की ओर प्रेरित कर सकते हैं।“