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शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: प्रासंगिकता
- जीएस 3: देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल-फसल प्रतिरूप, – विभिन्न प्रकार की सिंचाई एवं सिंचाई प्रणाली कृषि उपज के भंडारण, परिवहन तथा विपणन एवं मुद्दे एवं संबंधित बाधाएं
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: प्रसंग
- हाल ही में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने कहा कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती/जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (जेडबीएनएफ) को व्यापक स्तर पर अपनाने से कृषि फसलों के उत्पादन में ‘जबरदस्त कमी‘ आएगी।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: मुख्य बिंदु
- आईसीएआर ने जेडबीएनएफ के परिणामों को अनुभवजन्य रूप से मान्य करने हेतु 2019 में एक समिति का गठन किया था, जिसे निरंतर दो बजट-2019-20 एवं 2020-21 द्वारा प्रोत्साहित किया गया था।
- दोनों बजटों में, वित्त मंत्री ने जेडबीएनएफ को ‘किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक अभिनव मॉडल‘ के रूप में संदर्भित किया।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (जेडबीएनएफ) क्या है?
- शून्य बजट प्राकृतिक कृषि एक प्रकार की खेती है जो रसायन मुक्त कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करती है।
- जेडबीएनएफ मूल रूप से कृषि विज्ञानी सुभाष पालेकर द्वारा 1990 के दशक के मध्य में हरित क्रांति की पद्धतियों के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) बताता है कि ‘शून्य बजट‘ कृषि, ऋण पर निर्भरता को समाप्त करने एवं उत्पादन लागत में भारी कटौती करने, आशाहीन किसानों के लिए ऋण चक्र को समाप्त करने का वादा करती है।
- ‘बजट‘ शब्द साख एवं व्यय को संदर्भित करता है, इस प्रकार ‘ज़ीरो बजट‘ वाक्यांश का अर्थ है बिना किसी क्रेडिट का उपयोग किए एवं क्रय किए गए आदानों (इनपुट) पर कोई पैसा खर्च किए बिना।
- ‘प्राकृतिक खेती‘ का अर्थ है प्रकृति के साथ एवं बिना रसायनों के खेती करना।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पर विशेषज्ञ समिति
- समिति ने कहा कि यदि जेडबीएनएफ को व्यापक स्तर पर अपनाया जाता है तो उपज का जबरदस्त नुकसान होगा, जो भारत की खाद्य सुरक्षा को जोखिम में डाल सकता है।
- समिति ने निम्नलिखित बिंदुओं पर पर दिया है:
- खेतों में दीर्घावधि परीक्षण आयोजित करना।
- देश में कृषि फसलों के उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा उत्पादित करने वाले सिंचित क्षेत्रों के स्थान पर मात्र वर्षा सिंचित क्षेत्रों में जेडबीएनएफ पर भविष्य के अनुसंधान को कार्यान्वित करना।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: हरित क्रांति का प्रभाव
- सकारात्मक प्रभाव: अधिक उपज देने वाले बीजों की शुरूआत, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग एवं सुनिश्चित सिंचाई के साथ, भारत चावल, गेहूं, दलहन एवं तिलहन जैसी अनेक कृषि फसलों के सर्वाधिक वृहद उत्पादकों में से एक के रूप में उभरा है।
- नकारात्मक प्रभाव: यद्यपि उपज में वृद्धि हुई है, विगत चार दशकों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा के स्वास्थ्य में क्रमिक क्षरण हुआ है।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: समिति की सिफारिश
- जेडबीएनएफ के स्थान पर, विशेषज्ञ समिति ने मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए पशु अहाता की खाद, अंतरा-सस्यन, फसल विविधीकरण एवं एकीकृत पोषक प्रबंधन के उपयोग के माध्यम से संरक्षण कृषि जैसे कृषि प्रथाओं के उपयोग के माध्यम से एक एकीकृत उत्पादन प्रणाली को अपनाने की सिफारिश की है।
भारत में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि: वर्तमान स्थिति
- जेडबीएनएफ के अनेक तत्व जैसे बीजामृत (सीड-माइक्रोबियल कोटिंग), जीवामृत (सीड-माइक्रोबियल एनहांसर), वाफसा ( सोयल-अरेशन) एवं अच्चादाना (मल्चिंग), इत्यादि का नाम वर्तमान में संरक्षण कृषि के अंतर्गत प्रचलित है।
- इसके अतिरिक्त, परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की एक उप योजना, भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) को 2020-21 से लागू किया जा रहा है, जो जेडबीएनएफ सहित पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।